हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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बाली जी
ReplyDeleteहमेशा की तरह इस बार भी बेहद खूबसूरत रचना लगी आप की.कम शब्दों में बड़ी बात keh देना आप की खूबी है जिसका मैं कायल हूँ . बधाई.
नीरज
परमजीत जी
ReplyDeleteक्या बात है? आपके और हमारे विचार और भाव बहुत मिलते हैं.
दीपक भारतदीप
sahi kaha,garib ke ansu kisi ko nahi dekhte,par,bikte jaroor hai,dusron ka pet9stomach) bharne ke liye.
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