पुन:आवृति
यह पलकें
सदा भीगी रहती हैं।
कभी धूँए से
कभी आग से,
कभी दर्द से।
अब कब और कैसे सूखेगा पानी?
कब खतम होगी यह कहानी?
"वो" भी इन से मुँह फैर बैठा है।
पता नही इन से क्यों ऐंठा है?
हरिक आदमी अपनी ताकत
इसी पर अजमाता है।
सताए हुए को और सताता है।
आज फिर
एक कहानी याद हो आई?
जो किसी ने थी सुनाई।
अर्जुन ने एक बार
जब वह वन में घूम रहे थे
श्रीकृष्ण के साथ , पूछा था-
"भगवान!आप सताए हुए को क्यों सताते हो?"
"जब कि हमेशा उसे अपना बताते हो।"
कृष्ण बोले-"अभी बताता हूँ.."
"पहले मेरे बैठनें को एक ईट ले आओ।"
अर्जुन तुरन्त चल दिया।
लेकिन बहुत देर बाद ईंट ले कर लौटा।
कृष्ण ने उसे टोका
और पूछा-"इतनी देर क्यों लगा दी?"
"पास में ही तो दो कूँएं थे वही से क्यों नही उखाड़ ली?"
अर्जुन बोला-"प्रभू! वह टूटे नही थे,ईट कैसे निकालता?"
कृष्ण बोले-"मै भी तो इसी तरह सॄष्टी को हूँ संम्भालता।"
टूटे को सभी और तोड़ते हैं।
मजबूत के साथ अपने को जोड़ते हैं।
ऐसे में,
कैसे कमजोर आदमी को
संम्बल ,सहारा मिलेगा।
क्या उस का चहरा भी
कभी खिलेगा?
यह पलकें
ReplyDeleteसदा भीगी रहती हैं।
कभी धूँए से
कभी आग से,
कभी दर्द से।
" kya khun, so emotional words.."
regards
परमजीत जी
ReplyDeleteआपका ब्लॉग और नाम बहुत ही सुंदर लगे।
कविता में कृष्ण और अर्जुन के संदर्भ से प्रथम भाग में एक प्रश्न का समाधान करने से रोचकता बढ़ गई। कविता की इस प्रकार की शैली अच्छी लगी।
बधाई!
महावीर शर्मा
बाप-रे-बाप आपने तो कृष्ण-प्रसंग से इस बात को भाव-विभोर बना दिया...जिसमें डूबा मैं अब तक बैठा हूँ...बधाई.....
ReplyDeleteकमाल की रचना बाली जी...बहुत अच्छा और प्रेरक प्रसंग सुनाया आपने..साधुवाद...
ReplyDeleteनीरज
सोचने के लिये बहुत सामग्री दे दी आपने !!
ReplyDeleteसस्नेह -- शास्त्री
अति उत्तम
ReplyDeleteकृष्ण -अर्जुन प्रसंग के माध्यम द्वारा कितने सरल तरिके से अत्यन्त गहरी बात कह डाली.
बधाई स्वीकार करे
क्या बात कही है. विशुद्ध छायावाद. आभार.
ReplyDeletehttp://mallar.wordpress.com
सताए हुए को और सताता है बिल्कुल सही अभिव्यक्ति है ईंट का द्रष्टान्त माकूल है सही है टूटे मकान के पत्थर ही लोग उठा कर ले जाते है /"सबै सहायक सबल के निबल न कोऊ सहाय/पवन जलावत आग को दीपहि देत बुझाय ""इनको संबल सहारा देने के बड़े बड़े तर्क गढ़ रखे है पिछले जन्म का कर्म .,भाग्य ,और भी न जाने क्या क्या /इनके भाग्य विधाताओं को हम देख ही रहे है ""तुमने क्या काम किया ऐसे अभागों के लिए जिनकी मेहनत से तुम्हे ताज मिला तख्त मिला /इनके सपनों के जनाजों में तो शैल होते ,तुमको शतरंज की चालों से नहीं वक्त मिला /लेकिन कमजोर आदमी इन बड़ों से अच्छा है ""तुमने देखे ही नहीं भूक से लड़ते इन्सां ,सिलसिले मौत के जो बंद नहीं होते है "" {लेकिन } इनके चिथड़े लगे कपड़े ये गवाही देते ,इनके आदर्शों में पैबंद नहीं होते है ""अब और ज़्यादा अगली पोस्ट पर
ReplyDeleteBhai balijee
ReplyDeleteApko meree kavita pasand aai ye mera saubhagya.Mane apke blog par khoya hua ghar, kamjor admee padheen. Donon hee kavitaen kathya shilp donon hee drishtiyon drishtiyon se achchee han.Apne sach hee likha ha Aj ke samaj men har vyakti majboot admee ke sath khud ko jodata ha .Aise men kamjor ,gareeb ,sataye hue logon ka kya hoga?
Achchee rachna ke liye badhai evam shubhkamnaen.
Hemant Kumar
जागरूक होने की प्रेरणा मिलती है बहुत अच्छी-अच्छी बातें सिखने को मिलती हैं बहुत अच्छा और उपयोगी बातें कहीं हैं आपने अपनी इस अनमोल रचना मे.....
ReplyDeleteटूटे को सभी तोड़ते हैं मजबूत के साथ अपने को जोड़ते हैं .....सही बात है
इस ब्लॉग पर आकर मन को बहुत अच्छा लगा.......
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है आने के लिए
आप
๑۩۞۩๑वन्दना
शब्दों की๑۩۞۩๑ इस पर क्लिक कीजिए
आभार...अक्षय-मन
कड़वे सच की अदभुत दास्तान
ReplyDeleteToote ko sabhi aur todte hai ...majboot ke saath apne ko jodte hai....
ReplyDeleteek vastvikta ha inn panktiyon mein....
Badhai...
Baliji,
ReplyDeleteApke blog par apkee kavitaen padhee. kafii prabhavit karne valee kavitaen han.Meree shubhkamnayen.
Vinaya
बाली जी ,
ReplyDeleteइस बार तो कमाल कर दिया . बहुत ही अच्छी बात , शब्दों के जरिये से दिल के भीतर समा गई . और कविता में मौजूद कृष्ण और अर्जुन के संदर्भ हमें एक नया thought देती है . . और आपकी रचना एक पुरानी सी बात को इंगित करती है . पर हम सब इस बात से जीवन भर अज्ञान रहतें है ... बहुत अच्छी रचना .. मन को छु गई ....
बहुत बहुत बधाई
विजय
Note : pls visit my blog : www.poemsofvijay.blogspot.com , इस बार कुछ नया लिखा है ,आपके comments की राह देखूंगा .
क्या बात है बंधु जी... बढ़िया रचना... साधुवाद...
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता है, धन्यवाद!
ReplyDeleteयह पलकें
ReplyDeleteसदा भीगी रहती हैं।
कभी धूँए से
कभी आग से,
कभी दर्द से।
कैसे कमजोर आदमी को ,संबल-सहारा मिलेगा ,उसका चेहरा कब खिलेगा .मैं इसकी तारीफ भी नहीं लिख पा रहा हूँ .
वाकई सर्वश्रेष्ठ.
इतना सुंदर लिखा पड़ कर बहुत अच्छा लगा! बधाई आपको!
ReplyDeletemaine sochabhi nahi tha ki kaavya ko darshan ka aisa twist denge aap. bahut sunder .aap ki tarah hee der tak padhata hoon ,der se uthta hoon .dhanyavad.likhiye aur bantiye
ReplyDeleteaap ka hi
dr.bhoopendra
...सुन्दर रचना है, शिक्षाप्रद है।
ReplyDeleteअच्छी रचना है.
ReplyDeleteपूछों दूसरों की आंखों से आंसू,
महसूस करो उन के दिल का दर्द,
यही है सच्ची मानवता,
ईश्वर की पूजा.
bahut hi marmik kavita aur yatharth ka parichay pauranik kahani ke dwara batane ke liye sadar dhanyawaad.-dr.jaya
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