हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Sunday, March 16, 2008
अकेलापन
रात अंधेरी
मन डाले फेरी
दूर कही पर
फिर दिख रही है
पड़ी हुई इक
सपनों की ढेरी।
रूकता नही
पल भर भी
बींनने निकला है
बचपन कही
मिल जाए
मन फिर से
खिल जाए
लेकिन
इतनी अच्छी
कहाँ
किस्मत ये मेरी।
जैसे-जैसे मैं
हो रहा बूढा हूँ
फिर पीछे
लौटनें को
मन मेरा करता है
आहें, नित भरता है
जो पीछे छूटा था
वही तो
आगे है
ना जानें फिर भी
क्यूँ ये मन
भागे है
आदत है मेरी।
पल-पल में मेरे शब्द
अर्थ बदल जाते हैं
कल मेरे साथ थे
आज चिड़ाते हैं
सब समय का खेला है
जीवन को मैनें तो
ऐसे ही धकेला है
बिल्कुल अकेला है
कहानी
ये किस की है
तेरी या मेरी।
रात अंधेरी
मन डाले फेरी
दूर कही पर
फिर दिख रही है
पड़ी हुई इक
सपनों की ढेरी।
पहले तो आपको इस सुन्दर कविता के लिए बधाई।
ReplyDeleteरूकता नही
पल भर भी
बींनने निकला है
बचपन कही
मिल जाए
मन फिर से
खिल जाए
लेकिन
इतनी अच्छी
कहाँ
किस्मत ये मेरी।
बहुत ही अचछी लाइनें।
रूकता नही
ReplyDeleteपल भर भी
बींनने निकला है
बचपन कही
मिल जाए
मन फिर से
खिल जाए
लेकिन
इतनी अच्छी
कहाँ
किस्मत ये मेरी।
paramjit ji,bahut bahut badhai,bahut bhavpurn kavita hai,sundar panktiyan.kash bachpan lautkar aata,do pal main us chutpan ko jee pata.
kya baat hai! mazaa aa gaya!
ReplyDeleteपरमजीत जी - सफर में पुराने साथी हैं आप, हम सब की हौसला अफजाई के - इस कविता की यह पंक्तियाँ बहुत ही दिल छूने वाली लगीं - " जो पीछे छूटा था/ वही तो/ आगे है/ ना जानें फिर भी/ क्यूँ ये मन/ भागे है" - मन की बात प्रेम से लिखें, हम साथ हैं - साभार मनीष
ReplyDeleteसच ही कहूंगा
ReplyDeleteझूठने या झूठ कहने
की नहीं आदत मेरी
भाव अच्छे हैं
विचार सच्चे हैं
गलतियां हैं वो
बिंदियों की
ऊंगलियों की
नहीं बालियों की
परम को जीतने
वाले बाली हैं आप
गलतियां करते हैं
बिंदियों की बार बार
लगातार
इस पर दें ध्यान
फिर अवश्य नापेंगे
आप आसमान
धारणा है मेरी
किस्मत है तेरी
फिर लगा एक और
कविता की फेरी
अवश्य जगेगी
जीतेगी किस्मत तेरी
कामना मेरी तेरी चितेरी.
- अविनाश वाचस्पति
अविनाश जी,धन्यवाद। कोशिश करूँगा सुधारनें की।
ReplyDeleteरात अंधेरी
ReplyDeleteमन डाले फेरी
दूर कही पर
फिर दिख रही है
पड़ी हुई इक
सपनों की ढेरी।
kya baat hai...
fir dikh rahi hai
padee huee eek
sapanon kee dheree...
fantastic....
badhiya rachana, abhivyakti...
सुन्दर सुन्दर सुन्दर
ReplyDeleteजैसे-जैसे मैं
ReplyDeleteहो रहा बूढा हूँ
फिर पीछे
लौटनें को
मन मेरा करता है
Beautiful poem! Aapki yeh poem padh mera dil yahi kah raha hai kahne ko....
"Ye daulat bhi le lo, ye shoharat bhi le lo
bhale chhin lo mujhse meri javaani
magar mujhko lauta do bachapan ka saavan
vo kagaz ki kashti, vo barish ka pani...."
rgds
बहुत बढिया कविता के साथ आपका फोटों देखकर बहुत खुशी हुई.
ReplyDeleteदीपक भारतदीप
Sunder Kavita lagee.
ReplyDeleteपरमजीत जी बहुत हि सुनदर ओर मन के तारो को छुती हू आप की यह कविता हे, धन्यवाद
ReplyDeleteHello. This post is likeable, and your blog is very interesting, congratulations :-). I will add in my blogroll =). If possible gives a last there on my blog, it is about the Smartphone, I hope you enjoy. The address is http://smartphone-brasil.blogspot.com. A hug.
ReplyDeleteअत्यन्त सुन्दर कविता के लिए बधाई।
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