हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Thursday, March 20, 2008
वो जब याद आए बहुत याद आए......
सोच रहा था इस होली पर सभी कुछ ना कुछ लिख रहे हैं ।क्यूँ ना मैं भी कोई गीत लिखूँ । यही सोच कर कुछ लि्खना चाह रहा था।लेकिन समझ नही पा रहा था की क्या लिखूँ।पता नही कैसे पुरानें दिन याद आ गए।अपनें पुरानें दोस्तों की याद आनें लगी।.....वह भी क्या दिन थे जब होली के आनें से पहले ही यह तय हो जाता था कि इस बार हमारी टोली को कहाँ कहाँ धावा मारना है।किस से कैसे हिसाब चुकता करना है।होली के आते ही पिछली होली में जिनके हाथों अपनी बुरी गत बनी थी ,इस बार कैसे उन से बदला लेना है।बस यही प्लान बनते रह्ते थे।आज इसी लिए शायद होली के आनें पर मुझे उन की कमी खलनें लगी थी।उन की याद आते ही मैं गीत गुनगुनानें लगा।साथ ही साथ उसे लिखता भी जा रहा था।अभी मैनें चार लाईनें ही लिखी थी।.......मुझे ऐसा आभास हुआ जैसे मेरे भीतर कोई और बैठा हुआ मेरे लिखे का किसी दूसरे रूप में उत्तर दे रहा है। इस लिए उस समय जो लिखते समय,दूसरी पंक्तियां मेरे भीतर आ रही थी,वह भी मैनें लिख ली।अब देखिए कैसे एक दर्द भरा गीत हास्य गीत बन गया। मुझे लगता है यह सब होली का असर है ,जिसनें मेरे भीतर ऐसे भाव पैदा कर दिए।.. ..अब आप वह गीत कैसा बना?....आप भी पढ़ें।
इस होली में रोएंगी आँखियाँ साथी मेरे पास नही।
होली के रंग बहुत हैं महँगें, पैसे मेरे पास नही।
याद में उनकी आँसू बहते,लौटेगें कभी,आस नही।
उधारी खा ,कोई कब लौटाता,ऐसा कोई इतिहास नही।
जिस रंगमें तुमनें रंगा था उस रंग को ना भूल सका,
मुफत खोर खा पी कर कब का, वह किस्सा ही भूल चुका,
अब दूजा कोई रंग चड़ेगा,मुझको ऐसी आस नही।
तुम क्यूँ बैठ ,होली पर रोते,रोनॆं की कोई बात नही,
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इस होली में रोएंगी आँखियाँ साथी मेरे पास नही।
याद में उनकी आँसू बहते,लौटेगें कभी,आस नही।
जिस रंगमें तुमनें रंगा था उस रंग को ना भूल सका,
अब दूजा कोई रंग चड़ेगा,मुझको ऐसी आस नही।
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होली के रंग बहुत हैं महँगें, पैसे मेरे पास नही।
उधारी खा ,कोई कब लौटाता,ऐसा कोई इतिहास नही।
मुफत खोर खा पी कर कब का, वह किस्सा ही भूल चुका,
तुम क्यूँ बैठ के होली पर रोते,रोनॆं की कोई बात नही।
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अत्यन्त सुंदर अभिव्यक्ति !आपको भी होली की शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना हे आप की,आपको भी होली की शुभकामनाएं !! भाई हमे होली खेले ही २८ साल हो गये , बस अब तो यादो मे ही होली खेल लेते हे.
ReplyDeleteहोली के रंग बहुत हैं महँगें, पैसे मेरे पास नही।
ReplyDeleteउधारी खा ,कोई कब लौटाता,ऐसा कोई इतिहास नही।
मुफत खोर खा पी कर कब का, वह किस्सा ही भूल चुका,
तुम क्यूँ बैठ के होली पर रोते,रोनॆं की कोई बात नही।
bahut hi sahi,maza aagaya,aur muskan bhi chagayi,sundar,holi ki bahut mubarak baat aapko.
होली के रंग बहुत हैं महँगें, पैसे मेरे पास नही।
ReplyDeleteउधारी खा ,कोई कब लौटाता,ऐसा कोई इतिहास नही।
मुफत खोर खा पी कर कब का, वह किस्सा ही भूल चुका,
तुम क्यूँ बैठ के होली पर रोते,रोनॆं की कोई बात नही।
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बहुत बढिया पंक्तियाँ
दीपक भारतदीप
सुबह सुबह हंसाने के लिए आपका आभारी हूँ !
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