होली खेलें कैसे नंदलाल ,राधा रूठी रे।
पहले बनूँगी मैं नंदलाल, राधा रूठी रे।
नाची बहुत बंसी पे तेरी,मेरे कान्हा प्यारे।
अब चाहूँ बंसी मैं बजाऊं,नाचें कान्हा प्यारे।
तब चाहे मोहे रंग दे जितना,जैसे कहे मैं नाचूँ,
सदियों से नाच-नाच कर थक गए पैर हमारे।
होली खेले कैसे नंदलाल ,राधा रूठी रे।
पहले बनूँगी मैं नंदलाल, राधा रूठी रे।
मैं ग्वाला बन गाएं चराऊँ,पानी तुम भर लाना रे।
जमनामें नहाओ जब तुम,निवस्त्र तुम्हें सताऊँ रे।
लोक -लाज तज,सुन बंसी मेरी नंगे पाँवों आ जाना,
कैसा लगता कान्हा तब तुम्हे,हम को जरा बताओ रे।
होली खेले कैसे नंदलाल ,राधा रूठी रे।
पहले बनूँगी मैं नंदलाल, राधा रूठी रे।
राधा की इस माँग के कारन, कान्हा चुप-छुप जाए रे।
बड़े-बूढें राधा को बोलॆं ,उलटी गंगा ना, बहाओ रे।
पर राधा नही रूकनें वाली,ह्ठ कब किसनें छोड़ा है,
परमजीत अब कोई आके इन सब को समझाओ रे।
होली खेले कैसे नंदलाल ,राधा रूठी रे।
पहले बनूँगी मैं नंदलाल, राधा रूठी रे।
होली मुबारक. परमजीत भाई.
ReplyDeleteradha ki jidd bahut hi sundar hai,holi mubark
ReplyDeleteहोली मुबारक हो आपको व आपके पूरे परिवार को...
ReplyDeleteपरमजीत जी होली की आपको बधाई हो
ReplyDeleteदीपक भारतदीप
Aaha, Lajawaab!
ReplyDeleteपरमजीत भाई यह राधा कही जींस ओर टी शर्ट वाली तो नही हे, तो कया नंदलाल बिकनी पहन कर नहयेगे ?
ReplyDeleteआप की कविता एक अच्छा व्यंग हे, धन्यवाद
आपको होली बहुत-बहुत मुबारक.
ReplyDeleteradha ko naye rang me ranga, sundar
ReplyDeleteराधा की इस माँग के कारन, कान्हा चुप-छुप जाए रे।
ReplyDeleteबड़े-बूढें राधा को बोलॆं ,उलटी गंगा ना, बहाओ रे।
पर राधा नही रूकनें वाली,ह्ठ कब किसनें छोड़ा है,
परमजीत अब कोई आके इन सब को समझाओ रे।
Bahut khoob! poem ke sath sath baby ki pic bhi bahut pyari hai. Belated happy holi!
sundar abhivyakti
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति !
ReplyDeletebahut bahuut holi mubarak ho
ReplyDelete:)
thodi der se hi sahi...mubarak ho
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