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Monday, July 14, 2008

थोड़ा-सा प्यार होता....

जुदाई में उनकी दिल, ज़ार-ज़ार रोता।
गर दिलमें उनके, थोड़ा-सा प्यार होता।

मसीहा बन कहर, ढहाते ना रहते,
गर अपनें मोमिन पर, एतबार होता।

तबस्सुम की खातिर, दु्श्मन ना बनाते,
किसी और की है , जो मालुम होता।

ज़मानें की परवाह , छोड़ी थी हमनें,
ज़मानें संग चलते जो,एतराज होता।

अच्छा किया, ठोकर मारी जो तुमनें,
परमजीत, आशिक, शायर ना होता।

जुदाई में उनका दिल, ज़ार-ज़ार रोता।
गर दिलमें उनके, थोड़ा-सा प्यार होता।

12 comments:

  1. nice one.i am suffering from lambi judaai from my love

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  2. जुदाई में उनका दिल, ज़ार-ज़ार रोता।
    गर दिलमें उनके, थोड़ा-सा प्यार होता।
    " wonderful poetry,liked it"

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  3. Itne dino ke baad aapke poem padhne ko mile......shukriya!

    rgds

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  4. वाह! आप तो भावनाओं का दरिया बहा ले जा रहे है किसी समन्दर दिल तक! बहुत ख़ूब!

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  5. परमजीत जी, एक से बढ कर एक बहुर सुन्दर शेर हे,बहुत धन्यवाद

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  6. अच्छा किया, ठोकर मारी जो तुमनें,
    परमजीत, आशिक, शायर ना होता।
    परमजीत जी
    बड़ा लंबा इन्तेजार करवाया है इस बार आपने...ब्लॉग पर वापस आने और इतनी उम्दा ग़ज़ल पढ़वाने का शुक्रिया. मैंने आप को अपने ब्लॉग पर खोपोली दर्शन के लिए आमंत्रित किया था आप आए ही नहीं? नाराज हैं?:)
    नीरज

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  7. जुदाई में उनका दिल, ज़ार-ज़ार रोता।
    गर दिलमें उनके, थोड़ा-सा प्यार होता।
    बहुत उम्दा ! दिल बाग़ बाग़ हो गया !
    शुक्रिया !

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  8. shukriya paramjeej ji, ek achhi rachna ke liye. aapka prem mujhe bhi mil raha hai.
    Thanks once again and keep encouraging me with your comments.

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  9. अच्छा किया, ठोकर मारी जो तुमनें,
    परमजीत, आशिक, शायर ना होता।

    Bahut khoob Paramjeet...
    Bahut umda...

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