कुछ पुरानी क्षणिकाएं
१
एहसान
तुम मेरी बात पर
कभी ना नही कहना।
मेरे बोझ को सदा
अपना समझ
सहना।
२.
सरकार
वादे और सपनें बेचनें की कला
सिर्फ
अपना भला।
३.
नेता
कुत्तों का मालिक
जनता का लुटेरा
एक बड़े घर में
जबरन
डाले है डेरा
४.
वामपंथी
इन के झंडें का रंग लाल
इन के मुँह का रंग लाल
इन का भोजन का रंग लाल
फिर भी कुर्सी पर बैठें हैं।
इसे कहते हैं हमारे देश में
प्रजातंत्र
है ना कमाल!!!
वापसी को बनाये रखिए और रचनाएँ इसी तरह प्रस्तुत करते रहा करिए!
ReplyDeleteबहुत सही. अब नियमितता बरकरार रखें भाई.
ReplyDeleteNice one.
ReplyDeleteसभी बहुत अच्छी लगी
ReplyDelete"all are good to read"
ReplyDeletesabhi bahut achchi hai
ReplyDeleteअजी आप इतनी सुन्दर कवितये लिखते हे, है ना कमाल!!!
ReplyDeleteall are good.........
ReplyDeleteBahut badia Paramjeet...
ReplyDeleteToo good !!
Keep it up !!
बधाई स्वीकारें बाली जी, सच्चाई कूट-कूट कर भरी है आपकी इन क्षणिकाओं में. खासकर अन्तिम क्षणिका पढ़कर बाबा नागार्जुन के शब्द याद आ गए - "इसी पेट के अन्दर समा जाए सर्वहारा - हरी ॐ तत्सत"
ReplyDeletebali ji thanks for your comments n your char lineye r too good
ReplyDeleteक्या बात है परमजीत बाली जी। मजा आ गया
ReplyDeleteदीपक भारतदीप