अपनी नाकामियों को
आपस में संवेदनाएं प्रकट कर
भूल जाना।
एक दूसरे पर
अरोप-प्रत्यारोप लगा
देश की जनता को भटकाना ।
यह हमारे देश की
सभी सरकारों का काम है।
इसी लिए
"मेरा भारत महान है।"
हमें भविष्य के सपनें देखनें
अच्छे लगते हैं।
इसी लिए हम
वर्तमान में नही जीते।
हर क्षेत्र में सदा
नजर आते हैं रीते।
हमारी यह सोच अब आम है।
इसी लिए
"मेरा भारत महान है।"
सवाल यह नही है कि
आतंकवादी आतंक फैलाते हैं।
सवाल यह है कि
हमें सभी आतंकवादी
धार्मिक क्यूँ नजर आते हैं?
हमें समझना होगा
हमारी इस सोच का
आधार क्या है?
हमारे नेताओं का
व्यापार क्या है?
हमारी सोच को
इस तरह बदलना
किसका काम है।
जानतें हम सभी हैं।
लेकिन कुछ करते नहीं।
इसी लिए
मेरा भारत महान है।
मेरे देशवासीयों
अब तो जागो!
अपने मत कि गोलियों से
ऐसे नेताओं के सीनें को दागो।
पार्टियों के नाम को नहीं,
अच्छे इन्सानों को जिताओ।
इन नालायकों से
अपनें देश को बचाओ।
यदि तुम कर सके
तो यही सबसे बड़ा
तुम्हारा काम है।
तभी तुम कहने के हकदार हो-
"मेरा भारत महान है।"
हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Saturday, November 29, 2008
Tuesday, November 18, 2008
कमजोर आदमी
पुन:आवृति
यह पलकें
सदा भीगी रहती हैं।
कभी धूँए से
कभी आग से,
कभी दर्द से।
अब कब और कैसे सूखेगा पानी?
कब खतम होगी यह कहानी?
"वो" भी इन से मुँह फैर बैठा है।
पता नही इन से क्यों ऐंठा है?
हरिक आदमी अपनी ताकत
इसी पर अजमाता है।
सताए हुए को और सताता है।
आज फिर
एक कहानी याद हो आई?
जो किसी ने थी सुनाई।
अर्जुन ने एक बार
जब वह वन में घूम रहे थे
श्रीकृष्ण के साथ , पूछा था-
"भगवान!आप सताए हुए को क्यों सताते हो?"
"जब कि हमेशा उसे अपना बताते हो।"
कृष्ण बोले-"अभी बताता हूँ.."
"पहले मेरे बैठनें को एक ईट ले आओ।"
अर्जुन तुरन्त चल दिया।
लेकिन बहुत देर बाद ईंट ले कर लौटा।
कृष्ण ने उसे टोका
और पूछा-"इतनी देर क्यों लगा दी?"
"पास में ही तो दो कूँएं थे वही से क्यों नही उखाड़ ली?"
अर्जुन बोला-"प्रभू! वह टूटे नही थे,ईट कैसे निकालता?"
कृष्ण बोले-"मै भी तो इसी तरह सॄष्टी को हूँ संम्भालता।"
टूटे को सभी और तोड़ते हैं।
मजबूत के साथ अपने को जोड़ते हैं।
ऐसे में,
कैसे कमजोर आदमी को
संम्बल ,सहारा मिलेगा।
क्या उस का चहरा भी
कभी खिलेगा?
यह पलकें
सदा भीगी रहती हैं।
कभी धूँए से
कभी आग से,
कभी दर्द से।
अब कब और कैसे सूखेगा पानी?
कब खतम होगी यह कहानी?
"वो" भी इन से मुँह फैर बैठा है।
पता नही इन से क्यों ऐंठा है?
हरिक आदमी अपनी ताकत
इसी पर अजमाता है।
सताए हुए को और सताता है।
आज फिर
एक कहानी याद हो आई?
जो किसी ने थी सुनाई।
अर्जुन ने एक बार
जब वह वन में घूम रहे थे
श्रीकृष्ण के साथ , पूछा था-
"भगवान!आप सताए हुए को क्यों सताते हो?"
"जब कि हमेशा उसे अपना बताते हो।"
कृष्ण बोले-"अभी बताता हूँ.."
"पहले मेरे बैठनें को एक ईट ले आओ।"
अर्जुन तुरन्त चल दिया।
लेकिन बहुत देर बाद ईंट ले कर लौटा।
कृष्ण ने उसे टोका
और पूछा-"इतनी देर क्यों लगा दी?"
"पास में ही तो दो कूँएं थे वही से क्यों नही उखाड़ ली?"
अर्जुन बोला-"प्रभू! वह टूटे नही थे,ईट कैसे निकालता?"
कृष्ण बोले-"मै भी तो इसी तरह सॄष्टी को हूँ संम्भालता।"
टूटे को सभी और तोड़ते हैं।
मजबूत के साथ अपने को जोड़ते हैं।
ऐसे में,
कैसे कमजोर आदमी को
संम्बल ,सहारा मिलेगा।
क्या उस का चहरा भी
कभी खिलेगा?
Thursday, November 13, 2008
गुरू नानक देव जी के पावन जन्मदिवस पर
मनाया जा रहा है।आप सब को बहुत-बहुत बधाई।
गुरू नानक देव जी का जन्म १४६९ को १५ अप्रेल को पंजाब के तलवंडी नामक एक गाँव में हुआ था। जो अब पाकिस्तान में है।उन का जन्म एक हिन्दू परिवार में हुआ था।उन के पिता का नाम मेहता कालू था और माता का नाम माँ तृपता जी था। उन की एक बड़ी बहन थी जिसका नाम बीबी नानकी जी था।
Sunday, November 9, 2008
खोया हुआ घर
कब चाहा है हमनें कभी
सभी का सुख
झाँक कर देखों जरा भीतर,
दूसरे का सुख तभी तक चाहते हैं
गर छुपा हो सुख अपना वहाँ पर।
पाया जब मैनें तो मेहनत यह मेरी
खो गया कुछ तो समझा लूटा किसी ने।
व्यर्थ का इक जाल बुन बैठा हूँ यारों-
झूठ को, अपना सच मानने पर।
दोष अक्सर दूसरों को दे रहा हूँ,
भय लगा रहता है ना देखूँ आईना पर।
देख वाहनों को पड़ोसी के घरों में,
हमको भी वाहन चाहिए
भले ना हो, जरूरत।
मन मेरा मुझको कहाँ ले जा रहा है?
नित नयी अभिलाषाओं का तुफान ला कर।
जिन्दगी अपनी ये क्या हो गई है?
आज अपनी हँसी भी खो गई है।
दोड़ना बस दोड़ते रहना यहाँ पर,
मंजिले सब की कहाँ पर खो गई है।
थक चुका , फिर भी चलता जा रहा हूँ
ढूढं पाऊँगा क्या मैं खोया हुआ घर।
कब चाहा है हमनें कभी
सभी का सुख
झाँक कर देखों जरा भीतर,
दूसरे का सुख तभी तक चाहते हैं
गर छुपा हो सुख अपना वहाँ पर।