हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Thursday, December 11, 2008
पीड़ा
कोई दूसरा पीड़ा दे ,
तो महसूस नही होता ।
अपनो की पीड़ा
बहुत तकलीफ देती है।
ऐसा लगता है मेरी हर खुशी
जलती चिता पर लेटी है।
इसी लिए जब भी
कोई अपना पास आता है।
कोई मीठा-सा गीत गाता है।
चाशनी में लिपटे जहरीले बोल
मुझ को सुनाता है।
सब जानते हुए भी
उन्हें भीतर उतार लेता हूँ।
इसी तरह इस अथाह सागर में
अपनी नौका खेता हूँ।
कई बार अपने से ही प्रश्न पूछता हूँ-
’क्या ऐसा सिर्फ मेरे साथ ही होता है?"
फिर चारो ओर
उत्तर सुनने की कोशिश करता हूँ।
किसी के पास कोई जवाब नही होता है।
बस इतना ही महसूस होता है।
यहाँ हर इन्सान
मेरी तरह ही रोता है।
main kya kahun
ReplyDeleteअपनो की पीड़ा
बहुत तकलीफ देती है।
aur
बस इतना ही महसूस होता है।
यहाँ हर इन्सान
मेरी तरह ही रोता है।
in lines mein to aapne jaisa apna man doosron ke man ke saath mila diya hai .
yahan hum sab tanha hai , ...
bahut accha likha hai , aur meri request hai ki roz like .. aapse seekhne ko milenga
bahut badhai
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
बहुत सुन्दर ! जैसा आप कह रहे हैं प्रायः वैसा होता है ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
bhut sunder kavita likhi hai. endum satya.
ReplyDeleteअपनों के द्वारा दिया गया दर्द, छल, अवहेलना तोड़ के रख देती है। पर ऐसे अपनों से गैर भले।
ReplyDeletesach to yahi hai ki apnon ko dhoondhta har insaan aapki tarah hi rota hai.......
ReplyDeletebahut hi achhi kavita
सही कहा आपने...
ReplyDeleteबस इतना ही महसूस होता है।
ReplyDeleteयहाँ हर इन्सान
मेरी तरह ही रोता है।
--सब महसूस करते हैं...बहुत सुन्दर लिखा!!
इसी लिए जब भी
ReplyDeleteकोई अपना पास आता है।
कोई मीठा-सा गीत गाता है।
चाशनी में लिपटे जहरीले बोल
मुझ को सुनाता है।
सब जानते हुए भी
उन्हें भीतर उतार लेता हूँ।
इसी तरह इस अथाह सागर में
अपनी नौका खेता हूँ।
बहोत ही उम्दा बात कही है बलि जी आपने बहोत ही गहराई में डूबी कविता मगर कहीं ना कहीं डूब के पार होने को संदेश भी देती है बहोत खूब साहब ढेरो बधाई आपको ....
अर्श
इसी लिए जब भी
ReplyDeleteकोई अपना पास आता है।
कोई मीठा-सा गीत गाता है।
चाशनी में लिपटे जहरीले बोल
मुझ को सुनाता है।
सब जानते हुए भी
उन्हें भीतर उतार लेता हूँ।
इसी तरह इस अथाह सागर में
अपनी नौका खेता हूँ।
har dil ki baat keh di,har kisiko es pida ka abnubhav hota hai,bahut marmik bhav badhai.
मन की उदासी पूरी तरह छलक उठी है!
ReplyDeleteमाफ़ी चाहूँगा, काफी समय से कुछ न तो लिख सका न ही ब्लॉग पर आ ही सका.
ReplyDeleteआज कुछ कलम घसीटी है.
आपको पढ़ना तो हमेशा ही एक नए अध्याय से जुड़ना लगता है. आपकी लेखनी की तहे दिल से प्रणाम.
अपनों की पीड़ा बहुत तकलीफ देती है...
ReplyDeleteसही कहा आपने...बहुत भावपूर्ण रचना...
नीरज
बहुत बढ़िया!!
ReplyDeleteयहां हर इंसान मेरी ही तरह रोता है...अच्छा है...आपका खुद के बारे में कहने का अंदाज भी अच्छा लगा...
ReplyDeleteभाई ये तो सबके साथ होता है ना......डोंट वरी यार..........बी हैप्पी..........!!
ReplyDeleteVERY beautifully narrated poem ,speaks alot about human nature.my best wishes.
ReplyDeletedr.bhoopendra
kya khoob likha hai aapne.......har dil ki halat bayan kar di
ReplyDeleteज़ाहिर है इंसान का एक तरह से रोना
ReplyDeleteसिर्फ़ ज़रूरी नहीं किसीका हर समय रोना
पीडा तो जब भी हो तकलीफ ही देती है
बाकी समय अच्छे एहसास भी तो देती है