चलने वालो को कब कोई रोक पाया है।
बस इतना याद रखो किसने सताया है।
यही चुभन जगाए रखेगी, काली रातों में,
विजय का गीत, सभी ने ऐसे गाया है।
बहुत नाजुक है ये दिल, तोड़ना नहीं।
संग है कोई, उसे राह में छोड़ना नही।
बहुत तकलीफ होती है ऐसे हालातों में,
पकड़ा हुआ हाथ कभी तू छोड़ना नही।
मत समझ गैर जो सताते हैं तुझको यहाँ।
इन की फितरत है,फिर वो जाएगें कहाँ।
खुदा के रहमों करम पर दोनों जिन्दा हैं,
खुदा ने ऐसा ही बनाया है शायद ये जहां।
बहुत बढ़िया, हृदयस्पर्शी!
ReplyDeleteचाँद, बादल और शाम
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही भावुक कविता लिखी आप ने धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत ख़ूब!
ReplyDeleteबहुत ही भावुक कविता
ReplyDeleteRegards
बाली भाई देरी के लिए मुआफी चाहता हूँ ... आखिरी मुक्तक तो जैसे कलेजे में उतर गया बहोत ही सुदर और बेहद खूबी से दर्द को उकेरा है आपने बहोत खूब ढेरो बधाई आपको
ReplyDeleteअर्श
बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteआपकी रचनाओं में एक ऐसा मर्म होता है
ReplyDeleteजो आँखों और दिल तक जाता है.......
मैं न चाहते हुए भी उदास हो जाती हूँ,
और आपकी कलम से दोस्ती कर लेती हूँ
Bahut achha hai lakin 2nd pera mujhe subse zyada achha laga.
ReplyDeleteBali ji,
ReplyDeleteApne muktakon men ap achchhee bhavnaon kee abhivyakti ke sath hee achchhe sandesh bhee dete chal rahe hain ...Badhai.
Hemant Kumar
itni shaan dar rachan ke liye badhai ... thaki hui zindagi ko raah deti hui , aur nai saanso ki chahat deti hui rachana ..
ReplyDeleteye aapki ab tak ki shaandar rachana hai ...
bahut si badhai ...
aajkal aap mere blog par nazar nahi daalte .. appke comments ke liye meri kai nayi poems raah dekh rahi hai ..
vijay
pls visit my blog :
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wah!sundar.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
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