हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Tuesday, December 30, 2008
कैसे वादे हैं तेरे
कैसी कसमें हैं तेरी, कैसे वादे हैं तेरे,
हर सहर खाते हो, शबमें, भूल जाते हो।
इससे अच्छा था , कोई वादा ना करते हमसे,
बेवजह रोज, शर्मिंदगी, उठाते हो।
जानते हैं, तुम्हारे दिलमें कोई, गैर रहता है,
नामालूम कैसे, दोनों से, निभाते हो।
भूलना चाहा बहुत, भूल ना पाया कोई,
दिल के हाथों, मजबूर,जब हो जाते हो।
अजीब बात है, हर दिल की ,यही कहानी है,
परमजीत हँसेगें गैर,आँसू जो बहाते हो।
कैसी कसमें हैं तेरी, कैसे वादे हैं तेरे,
हर सहर खाते हो, शबमें, भूल जाते हो।
क्या करें नियम की तरह, वादे भी तोड़ने की चीज़ हैं खाकर पेट थोड़े ही भरता है। अरे मज़ाक कर रहा था, कहाँ रहते हैं आज कल जनाब ईद के चाँद हो गये हैं। इस काव्य में मनोभाव का सुन्दर प्रस्तुतिकरण रहा!
ReplyDeleteछोडिये जनाब आगे बडिये---उनकी जफा पे अपनी वफा कहती है खुदगर्ज चेहरों पे अब नकाब रहने दो
ReplyDeleteकैसे है जनाब ? काफी दिनों के बाद !बहोत ही सुंदर भावों से प्रस्तुति बेहद खुबसूरत ...ढेरो बधाई बाली साहब...
ReplyDeleteअर्श
कैसी कसमें हैं तेरी, कैसे वादे हैं तेरे,
ReplyDeleteहर सहर खाते हो, शबमें, भूल जाते हो।
"कसमें और वादे होते ही बेफवा है, बस उठाए जाते हैं निभाए कहाँ जाते हैं, सुंदर अभिव्यक्ति "
Regards
इससे अच्छा था , कोई वादा ना करते हमसे,
ReplyDeleteबेवजह रोज, शर्मिंदगी, उठाते हो।
waah bahut hi badhiya,shayad ishq mein kasam todne ke liye khateho.
बाली जी आप लिखते बहुत कम हैं लेकिन जब लिखते हैं कमाल करते हैं...आप की ये रचना भी दिल से लिखी गई है और सच्ची बात कहती है...बहुत खूब भाई बहुत खूब....
ReplyDeleteनीरज
bahut sundar bali ji ,
ReplyDeleteजानते हैं, तुम्हारे दिलमें कोई, गैर रहता है,
नामालूम कैसे, दोनों से, निभाते हो।
kya likha hai , dil ke bheetar jaati hui lines hai ..
कैसी कसमें हैं तेरी, कैसे वादे हैं तेरे,
हर सहर खाते हो, शबमें, भूल जाते हो।
wah wah , bahut sundar sir ji ..
bahut badhai ..
main bhi kuch naya likha hai , aapka sneh chahiye ..
aapka vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
bahut hi achha likhte hain aap.......main to aapki prashansak ho gai hun
ReplyDeleteवाह क्या लिखा है, आप की कविता पढ कर मुझे एक गीत याद आ गया.... कस्मे वादे प्यार वफ़ा सब बाते है बातो का कया?..... बाली साहब आप के शेर गजले, ओर कविताये सीधी दिल मे उतरती है.
ReplyDeleteधन्यवाद
परमजीत जी,
ReplyDeleteआने वाला वर्ष आप और आपके परिवार के लिये ढेर सारी खुशियां ले कर आए।
bahut achha likhaa hai paramjit ji..
ReplyDeleteकैसी कसमें हैं तेरी, कैसे वादे हैं तेरे,
हर सहर खाते हो, शबमें, भूल जाते हो।
gazab ki lines hain ye...
वाह्! बहुत खूब. बहुत ही अच्छी रचना
ReplyDeleteआपको एवं आपके समस्त मित्र/अमित्र इत्यादी सबको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाऎं.
ईश्वर से कामना करता हूं कि इस नूतन वर्ष में आप सबके जीवन में खुशियों का संचार हो ओर सब लोग एक सुदृड राष्ट्र एवं समाज के निर्माण मे अपनी महती भूमिका का भली भांती निर्वहण कर सकें.
bhoolna chaha bahot, bhool n paya koi, dil ke haatho majboor jb ho jate ho....
ReplyDeletekisi ki bewfaae pr ranj ka izhaar agr zroori hai to, shikayat ka ikhtiyaar bhi laazim hai...
bahot achhi rachnaa hai...
badhaaee svukaareiN !!
---MUFLIS---