बिखरे हुए अक्षरों को
भावनाओं के धागे में
पिरों कर
बहुत यत्न से तुम आते हो।
फिर एक के बाद दुसरा
सजते जाते हो।
शब्द बन जाते हो।
लेकिन
यहाँ जब कोई इन्सा
तुम्हें देख सुन कर भी
अंजान रहता है।
तब नि:शब्द हो कर
यह शब्द
आँसू बन बहता है।
जब इन आँसुओं को
कोई नही पोंछता।
तुम्हारे लिए कोई नहीं सोचता।
तुम्हें भी लगती है चोंट।
तभी होती है
इन
शब्दों की मौत।
'जब इन आँसुओं को
ReplyDeleteकोई नहीं पोंछता।
तुम्हारे लिये कोई नहीं सोचता।
तुम्हें भी लगती है चोट्।'
बहुत सुन्दर! बहुत ही सुन्दर!
बहुत सुन्दर रचना एवं उम्दा भाव!!
ReplyDeleteसुन्दर भाव वाली रचना, पढ़कर अच्छा लगा
ReplyDelete---मेरे पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें | चाँद, बादल और शाम | तकनीक दृष्टा/Tech Prevue | आनंद बक्षी | तख़लीक़-ए-नज़र
शब्दों के लिए शब्दों के लिए इतने खुबसूरत भाव ,बेहद ही उम्दा बात कही है आपने ढेरो बधाई कुबूल करें ...
ReplyDeleteआपका
अर्श
haan tabhi hoti hai maut....
ReplyDeleteise mahsus kar sakti hun gahraai se
सुंदर भाव, बहुत सुंदर कविता.
ReplyDeleteधन्यवाद वाली साहब जी
bahut marmik bhav atisundar
ReplyDeleteबहुत सुंदर कहा आपने
ReplyDeleteवाह....वाह...क्या बात कह दी आपने...........शब्द की मौत का कारण ही बता दिया...!!
ReplyDeleteRespected Bali ji,
ReplyDeleteAtyant bhavpoorna evam marmik rachna.....
aadarniya baali ji
ReplyDeletebahut hi bhaavpoorn rachna ..
जब इन आँसुओं को
कोई नही पोंछता।
तुम्हारे लिए कोई नहीं सोचता।
तुम्हें भी लगती है चोंट।
तभी होती है
इन
शब्दों की मौत।
ye pankitiyaan , ultimate hai sir.
bahut badhai
sir main bi kuch naya likha hai .. aapka pyaar chahiye..
vijay
Bali ji,
ReplyDeleteBahut darshanik kavita hai.aksharon aur shabdon ko lekar achchha tana bana buna gaya hai.
lekin ...shabd to brahma hain ..inkee kabhee maut naheen hotee.
Hemant Kumar
'जब इन आँसुओं को
ReplyDeleteकोई नहीं पोंछता।
तुम्हारे लिये कोई नहीं सोचता।
तुम्हें भी लगती है चोट्।'
wah kya panktiya hai
bahut sahi kaha shabdo ki maut khamoshi ki chadar me lipati hui
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