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Monday, January 12, 2009

बचपन की यादें

झिम-झिम-झिम-झिम बरसे मेघा झिम-झिम बरसे अँखियां।
रात अंधेरी संग ना साथी, खो गई सारी सखियां।
आता है फिर याद हमें वही गुजरा हुआ जमाना।
लगातार बतियाते रहना, आँखों से शर्माना।
भूल ना पाए अब तक हम बचपन की वो यादें।
झूठ-मूठ के राजा-रानी, झूठ-मूठ के वादें।
बेमतलब दुश्मन से लड़ना,लड़-लड़ कर मर जाना।
झूठ-मूठ तेरा रोना,हँस कर, मेरा उठ जाना।
पता नही अब कब लौटेगी बचपन की वो सखियां।
झिम-झिम-झिम-झिम बरसे मेघा झिम-झिम बरसे अँखियां।


11 comments:

  1. बहुत सहज और सुन्दर कविता है

    ---मेरा पृष्ठ
    गुलाबी कोंपलें

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  2. bachpan ke din......in mohak yaadon ko hum kitne jatan se rakhte hain....aapne bata diya,bahut achha laga

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  3. बढ़िया अभिव्यक्ति. आजकल कम दिख रहे हो??

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  4. Respected Baliji,
    Bahut sahaj shabdon men apne bachpan kee yadon ko sanjoya hai.Badhai.
    Poonam

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  5. Bali ji,
    Bachpan kee yaden to sabheeke pas hotee hain,lekin unhen samhal kar ham kitna rakh pate hain ye hamaree khasiyat hogee.Achchhee kavita ke liye badhai.
    Hemant Kumar

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  6. आपका सहयोग चाहूँगा कि मेरे नये ब्लाग के बारे में आपके मित्र भी जाने,

    ब्लागिंग या अंतरजाल तकनीक से सम्बंधित कोई प्रश्न है अवश्य अवगत करायें
    तकनीक दृष्टा/Tech Prevue

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  7. झिम-झिम-झिम-झिम बरसे मेघा झिम-झिम बरसे अँखियाँ
    कितनी सुन्दर और गेयता में अति मधुर रचना रही ये बाली जी, आपका धन्यवाद और आभार इसे पढ़वाने के लिए। बचपन कितना हसीन हुआ करता था "झूठ-मूठ तेरा रोना,हँस कर, मेरा उठ जाना”
    अहा!

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  8. बहुत ही सुंदर यादें सजोई हैं आपने.......
    मन प्रफुल्लित हो गया.........रचना पढ़कर

    अक्षय-मन

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  9. aadarniy baali ji

    aapki kavita ne to hamen bachpan men pahuncha diya ..

    badhai , itni sundar rachna ke liye

    main bhi kuch naya likha hai ..

    aapka

    vijay

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  10. आपने तो भाई मुझे भी कुरेद दिया........इस अभिव्यक्ति के लिए आपको धन्यवाद..........!!

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