घूँघट में बैठी दुल्हन घूँघट मे रो रही है या हँस रही है,यह तो वही जानें! उस की आँख में खुशी के आँसू हैं या किसी दुख के,कोई दूसरा कैसे बता सकता है? इस का फैसला उसी पर छोड़ देना चाहिए कि वह किस राह जाती है,क्या सो्चती?सदियों से धरती में दबा कर रखा गया मोती अभी मोती नजर नही आयेगा। वह इतना मलीन हो चुका है कि उसे की पहचान करना भी अभी मुश्किल है कि वह क्या सच में कोई मोती ही है या कुछ ओर?
आज ऐसे लगता है जैसे हमने उस मोती को पीट पीट कर धरती में इतना गहरा ठोक दिया है कि वह अपने आप से बाहर निकलने की छटपटाहट में अपने ऊपर पड़ी गर्द ,पत्थर को हटानें की कोशिश करता है तो वह मोती ,गर्द और पत्थर हमें लौटा देता है।हम अब तक जो देते रहे हैं वही तो पाएगें।अब तो अपनी गलती स्वीकार करों। भले ही यह गलती तुमने नही तुम्हारे पूर्वजों ने की थी।
वैसे उसे मोती कहना सही नही लगता। बस यही करो कि वह वही हो सके जो तुम हो।
क्या आपको यह धीमी -सी आवाज सुनाई नही दे रही?......
bahut bhavuk kar dene wali rachana hai
ReplyDeleteWAH Bali g wah..
ReplyDeleteबहुत अच्छे भाव और शब्द ।
ReplyDeleteबहुत संवेदनापूर्ण!
ReplyDeletestabdh kar dene wali rachana.. dhero badhai aapko....
ReplyDeletearsh
बहुत ही भावनात्मक परन्तु सुंदर रचना. आभार.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया . भाई जी सबके सोचने के नजरिये अलग अलग होते है आप कुछ सोचते है दुल्हन बनी कुछ और सोचती है भाव अलग अलग होते है.
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