हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Saturday, January 31, 2009
बस! जागरण का इंतजार है
भीतर कुछ तो मरा हुआ है
तभी तो बाहर आँखें जो भी देखती है
भीतर कुछ सुगबुगाहट होती तो है
लेकिन फिर ना जानें क्युँ
कुछ करने से पहले ही मर जाती है।
अतंर्मन बस देखता रहता है
कुछ करता नही।
क्युँ हर बार ऐसा ही होता है
फिर अकेले में बैठ
यह मन रोता है।
पहले यह मन
दुनिया को देख कर कुछ कहता था।
अब खुद से कुछ नही कह पाता।
कुछ ऐसा खोज रहा हूँ
जो कहनें और करनें के लायक हो।
लेकिन हर बार की तरह
खाली हाथ लौट आता हूँ।
अब तो लगनें लगा है
यहाँ ऐसा कुछ भी नही है
जो कुछ होनें का एहसास
कुछ करनें का एहसास
मुझे करा सके।
यह सच है या सपना
यह जाननें के लिए रुका हुआ हूँ।
बस! जागरण का इंतजार है।
हमें वाही पुराना गीत याद आ रहा है "वो सुबह कभी तो आएगी" . सुंदर रचना. आभार.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और मनोरम रचना
ReplyDeleteसुंदर्।
ReplyDeleteसुंदर रचना............बहुत खूब है
ReplyDeleteबसंत पंचमी की बहुत बहुत बधाई
बाली साहब उम्दा लेखन है बहोत खूब लिखा है जागरण का इंतज़ार है ढेरो बधाई आपको साहब....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और मनोरम रचना !
ReplyDeleteबसंत पंचमी की बहुत बहुत बधाई !
लाजवाब बाली जी...बेहतरीन....हमेशा की तरह...
ReplyDeleteनीरज
अच्छी रचना....
ReplyDeleteआदरणीय बाली जी ,
ReplyDeleteबहुत अच्छी अभिव्यक्ति पूर्ण कविता ...
बधाई .
हेमंत कुमार
वाह बाली जी, वाह....... बेहतर कविता के लिये साधुवाद स्वीकारें..
ReplyDeleteवाह, सुन्दर रचना. बहुत खूब.
ReplyDeleteजी सर! ये दिक़्क़त हमारे यहाँ राजीव गान्धी के टाइम से ही चली आ रही है.
ReplyDeleteRespected Bali ji,
ReplyDeletesundar kavita..achchhe bhav..
Poonam
हमेशा की तरह अति सुंदर.
ReplyDeleteधन्यावाद
बस दो ही शब्द...........बहुत-१० खूब...........!!
ReplyDeleteलाजवाब कवित है
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