हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Saturday, February 14, 2009
मुक्तक माला - १५
किसी के रोकनें से कौन रूकता है?
बिना हारे यहाँ पर कौन झुकता है?
चलन यह आज का नही, बरसों पुराना है,
सदा दुनिया में यारों कौन रूकता है?
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चलने वालों को कब कोई रोक पाया है
बस इतना याद रखो किसने सताया है।
यही चुभन जगाए रखेगी, काली रातों में,
विजय का गीत, सभी ने ऐसे गाया है।
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हम चुप थे तो यह ना समझ की प्यार नहीं ।
कुछ पूछा नही,यह ना समझ इन्तजार नही ।
तेरी आहटों के सहारे ए- दोस्त जिन्दा थे,
माना अपनी जु़बा से कर सके इजहार नहीं।
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तीनों मुक्तक बेहतरीन. आखिर वाला तो कल अपने यहाँ टिप्पणी में पढ़कर ही वाह करवा गया था. :)
ReplyDeletebahut achchha likhaa hai.
ReplyDeleteतीनो मुक्तकों के लिए एक ही शब्द लाजबाब .
ReplyDeletewaah saare muktak bahut badhiya,khas kar 3rd.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ! अद्भुत !
ReplyDelete"हम चुप थे तो यह ना समझ की प्यार नहीं ।
कुछ पूछा नही,यह ना समझ इन्तजार नही ।
तेरी आहटों के सहारे ए- दोस्त जिन्दा थे,
माना अपनी जु़बा से कर सके इजहार नहीं।"
एकदम सही बात है की बिना हारे यहाँ कोई नहीं झुकता !
ReplyDeleteऔर दिखे या न दिखे लेकिन हारते तो सब कहीं न कहीं हैं |
ati uttam......... sahi hai har baar izhar nhi ho pata magar jazbaat to hote hain na.
ReplyDeletebahut khoob.
बहुत ही बढिया......
ReplyDeleteशुभकामनाओं के साथ
बहुत ही सुंदर तीनो एक से बढ कर एक.
ReplyDeleteधन्यवाद
तीनों ही मुक्तक बढ़िया हैं. साधुवाद.
ReplyDeletemuktak ki mukt kanth se prashnsa karta hu. achcha he, teeno behatar lage.
ReplyDeletebahut hi achha likha hai aapne...
ReplyDelete:)
... बहुत खूब, प्रसंशनीय अभिव्यक्ति है।
ReplyDeletebehatreen muktak , mazaa aa gaya ek ek muktak ko padhkar , apne aap men sampoorn kahani hai
ReplyDeletedil se badhai sweekar karen