आदमी अब हाड़ मास का नही रहा।
आज के वक्त ने हमसे यही कहा ।
अब उसकी रगो में लहू नही बहता,
अब वह अपनों की बात भी, नही सहता।
आज जीवन यही रंग दिखा रहा है
इसी लिए हरेक आदमी
सबके सामने मुस्कराता है।
लेकिन अकेले में आँसू बहा रहा है।
रिश्तों के मायनें अब पैसा है
इस से कोई फरक नही पड़ता
वह सफेद हो या काला,
कैसा है ?
धन है तो तुम मा-बाप भी हो ,
बेटा-बेटी और बहन- भाई भी।
तब प्यारी है जग हँसाई भी।
यह दुनिया की नही
मेरी अपनी कहानी है।
इन्सां ऐसा कैसे हो गया
इस बात की हैरानी है।ँ
अच्छी कविता लगी.
ReplyDelete" ये दुनिया की नही मेरे कहानी है..."
ReplyDelete"अति सुंदर ना जाने कितने इंसानों की कहानी है ये मगर इसको कुबल करना आसन नही..."
Regards
BAHOT HI BADHIYA TARIKE SE DUKH KO UKERA HAI AAPNE BAHOT HI SUNDAR BHAV,...
ReplyDeleteDHERO BADHAI AAPKO,,,
ARSH
sach ye har insaan ki kahani hai,bahut sundar tarike se dard ko pesh kiya hai badhai.
ReplyDeleteबहुत यथार्थ अभिव्यक्ति है
ReplyDeleteयह कड़वा सच आज अधिकाँश लोगों का दर्द बन
ReplyDeleteगया है, पैसे ने जीवन की दिशा बदल दी है..........
bahut sundar shabdon mein dhala hai dard ko aapne jiski dawa bhi nhi koi kyunki har kisi ki yahi kahani hai
ReplyDeleteशब्दों का जादू है. सुंदर रचना. आभार.
ReplyDeleteदुनियादारी है पैसे की, क्या इसमें हैरानी ?
ReplyDeleteजग का मायाजाल यही है, सबकी यही कहानी।
रिश्तों के मायनें अब पैसा है
ReplyDeleteपैसे की तराजू में आज कर हर चीज तुलती है, रिश्ते, नाते. फ़िर ये महत्त्व हीन है की पैसा कहाँ से आया ..........ज्वलंत कविता
बहुत पसंद आया
ReplyDelete---
गुलाबी कोंपलें ।
चाँद, बादल और शाम
बहुत कड़वी है पर यही सच्चाई है।
ReplyDeleteबिल्कुल ठीक कहा...
ReplyDeleteबहुत सही।
ReplyDeleteबेहतरीन कविता बाली जी, बधाई...
ReplyDeleteAdarneeya Bali ji,
ReplyDeleteapne admee ke madhyam se jeevan kee sachchai dikhai hai.shubhkamnayen.
वाकई, हैरानी होती है. उम्दा रचना.
ReplyDeletebahut acha likha hai apne
ReplyDeletebaali saheb ,
ReplyDeletemain ye kahun ki ye rachan aapki sarveshreshta rachnao me se ek hai to atishyokti nahi hongi
यह दुनिया की नही
मेरी अपनी कहानी है।
इन्सां ऐसा कैसे हो गया
इस बात की हैरानी है।ँ
kya baat hai ,
aapko aur aapki lekhni ko salaam