हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Saturday, May 30, 2009
गजल
जब भरे हुए जामों को, कोई होठों से लगाए,
तुम ही बता दो यार कोई कैसे मुस्कराएं।
दिल की अन्धेरी शब में घुटकर मरे तमन्ना,
तब किसकी आरजू को हँस कर गले लगाएं।
दुनियामे जबहम आए थे दुनियाकी ठोकरों मे,
है कौन जो झुक के हमको, थाम अब उठाए।
हमें भेजनें वाले ,थी क्या खता हमारी ,
पत्थरों के इस जहाँ में,किसे दर्द ये बताएं ।
Wednesday, May 20, 2009
मुक्तक माला - १७
Wednesday, May 6, 2009
कुछ ऐसे ही.......
हाथ फैला कर आकाश को बाँहों में भरने का प्रयास ना जाने कब से कर रहा था।लेकिन कुछ भी हाथ नही आया।जब भी जानना चाहा कि अब तक के प्रयासो से क्या पाया? तब- तब एहसास हुआ कि सभी प्रयास असफल रहे हैं।पता नही यह मेरे साथ हुआ कि सभी के साथ ऐसा ही होता है। इस बात को मैं नही जानता।लेकिन अब थोड़ा सम्भल गया हूँ।ऐसा मुझ को लगता है।क्युँकि अब बस उतना ही पाना चाहता हूँ जो मुझे मिला हुआ है।........इस लिए अब ऐसा लगता है कि सारा आकाश अब मेरा है।क्युकि अब मै आकाश को साफ-साफ देख पाता हूँ।अब समझ आया है कि प्रयास कर के वह नही भोगा जा सकता, जो बिना प्रयास किए भोगा जाता है।मुझे तो ऐसा ही लगता है।
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जीवन कि दोड़ मे थकान ही हाथ आई है।
सहारो कि अभिलाषाओ मे मुँह की खाई है।
मन जब, बच्चों के मन-सा, कोरा हुआ,
जिन्दगी मुझे देख सो बार मुस्कराई है।
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