हाथ फैला कर आकाश को बाँहों में भरने का प्रयास ना जाने कब से कर रहा था।लेकिन कुछ भी हाथ नही आया।जब भी जानना चाहा कि अब तक के प्रयासो से क्या पाया? तब- तब एहसास हुआ कि सभी प्रयास असफल रहे हैं।पता नही यह मेरे साथ हुआ कि सभी के साथ ऐसा ही होता है। इस बात को मैं नही जानता।लेकिन अब थोड़ा सम्भल गया हूँ।ऐसा मुझ को लगता है।क्युँकि अब बस उतना ही पाना चाहता हूँ जो मुझे मिला हुआ है।........इस लिए अब ऐसा लगता है कि सारा आकाश अब मेरा है।क्युकि अब मै आकाश को साफ-साफ देख पाता हूँ।अब समझ आया है कि प्रयास कर के वह नही भोगा जा सकता, जो बिना प्रयास किए भोगा जाता है।मुझे तो ऐसा ही लगता है। **************************************************************
जीवन कि दोड़ मे थकान ही हाथ आई है।
सहारो कि अभिलाषाओ मे मुँह की खाई है।
मन जब, बच्चों के मन-सा, कोरा हुआ,
जिन्दगी मुझे देख सो बार मुस्कराई है।*****************************