इन्सान का सोचा हुआ यदि हमेशा पूरा हो जाए तो सपनों को कौन देखेगा.......सपनों को कौन सजाएगा..।वैसे कोशिश तो सदा हमारी यही रहती है कि हमारे हर सपनें,हमारी हर सोच साकार होती नजर आए।लेकिन यह सब ख्याली पुलाव ही साबित होता है।जब भी हम पूरे मन से ,पूरी इच्छा से....जोश से किसी कामना को पूरा करने की अभिलाषा करते हैं,उतनी ही जोर की आवाज होती है सपनों के टुटनें की...... उतना ही गहरा दर्द महसूस होता है जितने प्यार से हम इन्हें सजानें मे लगे थे।..........यह बात नही है कि हमारे सपने हमारी कामनाएं हमेशा इसी तरह धराशाई हो कर हमारी आँखों मे खारा पानी भर कर चली जाती हैं.........हमारे भीतर हमेशा इसी तरह पीड़ा का एहसास करा कर गुम हो जाती हैं। कई बार..........या कहूँ बहुत बार......इन सपनों को पंख मिल जाते हैं.......इन कामनाओं को रास्ता नजर आनें लगता है....उस समय हमारे ये सपनें ऊँचे .... उस नीले आकाश में उड़नें लगता है.....उस समय मन करता है कि ऊपर और बहुत ऊपर, बस उड़ते ही जाएं........लेकिन हम सभी जानते हैं कि हमारी अपनी -अपनी एक सीमा होती है....हम एक सीमा के बाद स्वयं ही थक जाते हैं............उड़ने की चाह हमारी पूरी हो चुकी होती है.........ऐसा हमें उस समय लगता है.....यह बात अलग है.....कि कुछ समय बाद फिर वही चाह......कोई दूसरा रूप लेकर हमारे सामने खड़ी हो जाती है........और हम फिर उसी आकाश की ओर ताकनें लगते हैं........यह सिलसिला जीवन भर इसी तरह चलता रहता है।
कुछ साल पहले मैनें भी एक सपना देखा था.......उस समय सोचता था यह जरूर पूरा होगा।...उसका एक कारण था....पापा का हाथ बँटाते बँटाते अब हम उस मुकाम तक पहुँच गए थे......जिस सपने के पूरा होनें के बाद सपनें देखनें और उसके टूटनें पर, पाबंदी लगभग समाप्त हो जाती है.......... फिर सपनों को देखना.....उन्हें साकार करने की कोशिश करना ....अखरता नही है........ तब अगर वह सपनें टूट भी जाएं तो ज्यादा पीड़ा नहीं दे पाते।क्योंकि उस समय हम जिस जमीन पर खड़े होते हैं वह हमें टिके रहने का....खड़ा रहने का.........बहुत बड़ा कारण नजर आने लगती है।...यह सपना हर कोई देखता है........ वह बात अलग हो सकती है कि कुछ भाग्यशाली लोग ऐसे होते हैं कि उन्हें वह सपना विरासत में अपने पुरखों से ही प्राप्त हो जाता है।.......जी हाँ.......आप बिल्कुल सही सोच रहे हैं .....वह सपना जो हर कोई देखता है........एक छोटा-सा प्यारा-सा......अपने घर का सपना।जिस मे वह अपनी मर्जी से अपनें मन मुताबिक रंग भर सके..................अपनी मर्जी से सजा सँवार सके।..............पापा का वह सपना अब पूरा हो गया था।वैसे यह सपना तो हम सब का था.... सभी बहुत खुश थे.........खुश भी क्यों ना होते....जीवन -भर के सघर्ष के बाद आज सफलता हाथ आई थी.....लेकिन इस सफलता और खुशी के पीछे कुछ ऐसी कड़वीं बातें भी छुपी थी.....जिन्होनें...पापा के मन को कई बार पीड़ित किया था।........अपनों की ही बातें......तानें..उलाहनें....से परेशान हो कर ही तो इस सपनें ने जोर पकड़ लिआ था... पापा चाहते थे कि जल्द से जल्द यह सपना पूरा हो जाए और अब वह दिन आ गया था। सो मन की खुशी के साथ शांती भी पापा के चहरे पर अब दिखनें लगी थी।
आप सोच रहे होगें यह सब क्यों लिख रहा हूँ आज..........हमेशा कविताएं ....गीत गज़ल.....लिखते लिखते.....आज अपने पापा के सपनें के बारे में........भले ही उनका यह सपना अपनें लिए कम हमारे लिए ज्यादा देखा गया था।......इसे लिखने का कारण मात्र इतना है कि इसी माह हम फादर डे मना रहे हैं........लेकिन....मैं इसे इस कारण से नही लिख रहा.........इस का एक दूसरा कारण है.............फादर डे तो २१ तारीख को मनाया जाता है और मैं मानता हूँ कि पिता को मात्र एक दिन की याद मे बाँध कर नही रखा जा सकता....बल्कि जिनके मन में अपने पिता के प्रति श्रदा व प्रेम होता है....उन के लिए अपनें पिता के दिए संस्कारों व सीख को जीवन में उतारना,अपनाना ही, उन की याद को ताजा रखने में सदा सहायक सिद्ध होता है ।..........लेकिन आज २६ तारीख है.......और यह वही तारीख है जब मेरे पापा मुझे आज से ११ साल पहले अकेला छोड़ कर उस अंतहीन यात्रा पर निकल गए थे......जहाँ से कोई वापिस नही लौटता.........यह बात नहीं है कि मैं पुर्नजन्म पर विश्वास नही करता.......गीता और अपने धर्म की बातों को मे हमेशा अपने भीतर महसुस करता हूँ।...लेकिन जानता हूँ.......अपने पापा को......अपनी उस यात्रा पर जानें से एक साल पहले ही तो उन्होनें एक रात अचानक यह कह कर मुझे आहत कर दिया था...........बोले थे-.....अब हमारी सभी इच्छाएं पूरी हो गई....सभी काम पूरे हो गए.........अब हमारे जानें का समय आ रहा है......।जिस समय पापा ने यह मुझ से कहा था उस समय उन के चहरे पर एक अनोखी -सी आभा नजर आ रही थी....उन का चहरा एक रोशनी -सी फैंकता प्रतीत हो रहा था।.......जबकि मैनें इस घर के सपनें के पूरा हो जानें के बाद का एक सपना देखा था.......मैनें देखा था......कि अब समय आ गया कि मैं अपने पिता के साथ भारत भ्रमण पर निकल जाँऊगा............लेकिन उन के शब्दों ने मेरे इस सपने की नींव हिला कर रख दी थी.........मैं समझ गया था कि मेरा यह सपना अब सपना ही रह जाएगा.........उस समय मेरे भीतर एक पीड़ा -सी भी महसुस होने लगी थी....और पापा के विश्वास के प्रति श्रदा भी।............मुझे याद है उस रात बहुत देर तक मैं पापा की इस बात को लेकर उन से उलझ पड़ा था.......कारण यह था कि वह सिर्फ मेरे लिए मात्र एक पिता ही नही रहे.......वह मेरे मित्र भी थे.......और मेरे गुरू भी......जिन के समीप्य से में वह सब कुछ जान सका था.....जिसे जाननें के लिए लोग जीवन भर इधर-उधर भटकते रहते हैं....लेकिन बहुत ही कम किस्मत वाले होते हैं जिन्हें वह सब ज्ञान और अनुभव मिल पाता है जो उन की अपनी इच्छा के अनुकूल होता है।......उसे मैनें अपने पिता से पाया है।.........वैसे तो शायद ही कोई ऐसा पल होगा.......जब उन की याद फीकीं पड़ी हो.......लेकिन आज पता नही क्युँ मन ने मजबूर किया कि उन के बारे कुछ लिखुँ।..........जिन्हें मैं इतने बरसों से मन में संजोय बैठा हूँ.....एक इतिहास की तरह।वैसे तो उन के साथ बिताया एक एक पल मुझे याद रहा हैं सदा.......उन के जानें के बाद भी मैं उस बीते हुए पल को जीनें लगता हूँ......भले ही यह सब हकीकत में नही होता .........सिर्फ मेरी कल्पना ही होती है....आज भी मैं कई बार चौंक के बाहर दरवाजे पर जा कर खड़ा हो जाता हूँ......लगता है जैसे अभी अभी तो वह बाहर गए हैं.......अभी लौटते ही होगें....... । लेकिन दूसरे ही पल मैं वर्तमान मे लौट आता हूँ। यह बात नहीं की हकीकत में नही जानता.........जानता हूँ......वह अब कभी नही लौटेगें......लेकिन फिर भी पता नहीं क्युँ......मैं बार बार ऐसा कर बैठता हूँ.....इसी लिए आज ये चंद शब्द लिख कर अपने आप को समझानें की कोशिश कर रहा हूँ........लेकिन क्या समझाना चाहता हूँ.....मैं स्वयं ही नही जानता........शायद मेरे यह चंद शब्द............अपने पिता को एक पुत्र की श्रदाँजलि ही हो.........
कुछ साल पहले मैनें भी एक सपना देखा था.......उस समय सोचता था यह जरूर पूरा होगा।...उसका एक कारण था....पापा का हाथ बँटाते बँटाते अब हम उस मुकाम तक पहुँच गए थे......जिस सपने के पूरा होनें के बाद सपनें देखनें और उसके टूटनें पर, पाबंदी लगभग समाप्त हो जाती है.......... फिर सपनों को देखना.....उन्हें साकार करने की कोशिश करना ....अखरता नही है........ तब अगर वह सपनें टूट भी जाएं तो ज्यादा पीड़ा नहीं दे पाते।क्योंकि उस समय हम जिस जमीन पर खड़े होते हैं वह हमें टिके रहने का....खड़ा रहने का.........बहुत बड़ा कारण नजर आने लगती है।...यह सपना हर कोई देखता है........ वह बात अलग हो सकती है कि कुछ भाग्यशाली लोग ऐसे होते हैं कि उन्हें वह सपना विरासत में अपने पुरखों से ही प्राप्त हो जाता है।.......जी हाँ.......आप बिल्कुल सही सोच रहे हैं .....वह सपना जो हर कोई देखता है........एक छोटा-सा प्यारा-सा......अपने घर का सपना।जिस मे वह अपनी मर्जी से अपनें मन मुताबिक रंग भर सके..................अपनी मर्जी से सजा सँवार सके।..............पापा का वह सपना अब पूरा हो गया था।वैसे यह सपना तो हम सब का था.... सभी बहुत खुश थे.........खुश भी क्यों ना होते....जीवन -भर के सघर्ष के बाद आज सफलता हाथ आई थी.....लेकिन इस सफलता और खुशी के पीछे कुछ ऐसी कड़वीं बातें भी छुपी थी.....जिन्होनें...पापा के मन को कई बार पीड़ित किया था।........अपनों की ही बातें......तानें..उलाहनें....से परेशान हो कर ही तो इस सपनें ने जोर पकड़ लिआ था... पापा चाहते थे कि जल्द से जल्द यह सपना पूरा हो जाए और अब वह दिन आ गया था। सो मन की खुशी के साथ शांती भी पापा के चहरे पर अब दिखनें लगी थी।
आप सोच रहे होगें यह सब क्यों लिख रहा हूँ आज..........हमेशा कविताएं ....गीत गज़ल.....लिखते लिखते.....आज अपने पापा के सपनें के बारे में........भले ही उनका यह सपना अपनें लिए कम हमारे लिए ज्यादा देखा गया था।......इसे लिखने का कारण मात्र इतना है कि इसी माह हम फादर डे मना रहे हैं........लेकिन....मैं इसे इस कारण से नही लिख रहा.........इस का एक दूसरा कारण है.............फादर डे तो २१ तारीख को मनाया जाता है और मैं मानता हूँ कि पिता को मात्र एक दिन की याद मे बाँध कर नही रखा जा सकता....बल्कि जिनके मन में अपने पिता के प्रति श्रदा व प्रेम होता है....उन के लिए अपनें पिता के दिए संस्कारों व सीख को जीवन में उतारना,अपनाना ही, उन की याद को ताजा रखने में सदा सहायक सिद्ध होता है ।..........लेकिन आज २६ तारीख है.......और यह वही तारीख है जब मेरे पापा मुझे आज से ११ साल पहले अकेला छोड़ कर उस अंतहीन यात्रा पर निकल गए थे......जहाँ से कोई वापिस नही लौटता.........यह बात नहीं है कि मैं पुर्नजन्म पर विश्वास नही करता.......गीता और अपने धर्म की बातों को मे हमेशा अपने भीतर महसुस करता हूँ।...लेकिन जानता हूँ.......अपने पापा को......अपनी उस यात्रा पर जानें से एक साल पहले ही तो उन्होनें एक रात अचानक यह कह कर मुझे आहत कर दिया था...........बोले थे-.....अब हमारी सभी इच्छाएं पूरी हो गई....सभी काम पूरे हो गए.........अब हमारे जानें का समय आ रहा है......।जिस समय पापा ने यह मुझ से कहा था उस समय उन के चहरे पर एक अनोखी -सी आभा नजर आ रही थी....उन का चहरा एक रोशनी -सी फैंकता प्रतीत हो रहा था।.......जबकि मैनें इस घर के सपनें के पूरा हो जानें के बाद का एक सपना देखा था.......मैनें देखा था......कि अब समय आ गया कि मैं अपने पिता के साथ भारत भ्रमण पर निकल जाँऊगा............लेकिन उन के शब्दों ने मेरे इस सपने की नींव हिला कर रख दी थी.........मैं समझ गया था कि मेरा यह सपना अब सपना ही रह जाएगा.........उस समय मेरे भीतर एक पीड़ा -सी भी महसुस होने लगी थी....और पापा के विश्वास के प्रति श्रदा भी।............मुझे याद है उस रात बहुत देर तक मैं पापा की इस बात को लेकर उन से उलझ पड़ा था.......कारण यह था कि वह सिर्फ मेरे लिए मात्र एक पिता ही नही रहे.......वह मेरे मित्र भी थे.......और मेरे गुरू भी......जिन के समीप्य से में वह सब कुछ जान सका था.....जिसे जाननें के लिए लोग जीवन भर इधर-उधर भटकते रहते हैं....लेकिन बहुत ही कम किस्मत वाले होते हैं जिन्हें वह सब ज्ञान और अनुभव मिल पाता है जो उन की अपनी इच्छा के अनुकूल होता है।......उसे मैनें अपने पिता से पाया है।.........वैसे तो शायद ही कोई ऐसा पल होगा.......जब उन की याद फीकीं पड़ी हो.......लेकिन आज पता नही क्युँ मन ने मजबूर किया कि उन के बारे कुछ लिखुँ।..........जिन्हें मैं इतने बरसों से मन में संजोय बैठा हूँ.....एक इतिहास की तरह।वैसे तो उन के साथ बिताया एक एक पल मुझे याद रहा हैं सदा.......उन के जानें के बाद भी मैं उस बीते हुए पल को जीनें लगता हूँ......भले ही यह सब हकीकत में नही होता .........सिर्फ मेरी कल्पना ही होती है....आज भी मैं कई बार चौंक के बाहर दरवाजे पर जा कर खड़ा हो जाता हूँ......लगता है जैसे अभी अभी तो वह बाहर गए हैं.......अभी लौटते ही होगें....... । लेकिन दूसरे ही पल मैं वर्तमान मे लौट आता हूँ। यह बात नहीं की हकीकत में नही जानता.........जानता हूँ......वह अब कभी नही लौटेगें......लेकिन फिर भी पता नहीं क्युँ......मैं बार बार ऐसा कर बैठता हूँ.....इसी लिए आज ये चंद शब्द लिख कर अपने आप को समझानें की कोशिश कर रहा हूँ........लेकिन क्या समझाना चाहता हूँ.....मैं स्वयं ही नही जानता........शायद मेरे यह चंद शब्द............अपने पिता को एक पुत्र की श्रदाँजलि ही हो.........
आपके विचारों से सहमत
ReplyDeleteपिताजी दिवस है प्रतिदिन
मानें उनकी बातें सारी
यही करें सब हम तैयारी
आपके पिताजी को हमारी ओर से श्रद्धांजलि...
ReplyDeleteये तो अंग्रेजों ने एक दिन मुकर्रर कर दिया है हरेक के लिये क्योंकि उनके पास समय नहीं था, और अब हम भी वैसे ही हो चले हैं।
ReplyDeleteआज से १०-१५ साल पहले शायद कोई नहीं जानता था कि फ़ादर्स डे, मदर्स डे कब है शायद आज भी नहीं !!
हमारी ओर से भी श्रद्धांजलि..
ReplyDeleteाआदरणीय बाली जी ,
ReplyDeleteबहुत सरल शब्दों मे लिखा गया आपका संस्मरन अच्छा लगा।
पूनम
संस्मरण बहुत अच्छे से प्रस्तुत किया है,
ReplyDeleteधन्यवाद!
---
डायनासोर भी तोते की जैसे अखरोट खाते थे
पिताजी को मेरी भी श्रद्धांजलि।मेरे बाऊजी भी एक दिन अचानक हम सब को छोड़ कर चले गये थे।ये उनसे ही सिखा था कि जो करना है खुद करो और जो कुछ भी आज हूं उनके आशिर्वाद से हूं।बहुत याद आती है ऐसा कोई दिन नही होता जो मेरे लिये फ़ादर्स डे नही होता।जूते साफ़ करने से लेकर कपड़े प्रेस करना तक़ सिखाया था उन्होने।क्या क्या कहूं… रुला ही दिया आपने तो।
ReplyDeleteआदरणीय बाली जी ,
ReplyDeleteदिल से निकले जज्बात ......अति सुंदर .
आपके पिताजी को भावभीनी श्रधांजलि...बहुत किस्मत वाले होते हैं जिन्हें ऐसे पिता मिलते हैं...
ReplyDeleteनीरज
main aapki soch mein shaamil hun.....
ReplyDeleteदिल से लिखा है परमजीत जी आपने.............. सच सोला आने सच...........
ReplyDeletebahut badhiya post............
ReplyDeleteपरमजीत जी, आप का लेख पढ कर गोरव से सर ऊंचा भी उठता है, ओर पिता जी के जाने का दुख भी होता है, बच्चे को पिता जेसा चाहे बना दे, ओर मै आज जेसा भी हुं इस मै मेरे पिता जी का बहुत हाथ है, मेरी तरफ़ से आप के पिता जी को भाव भीनि श्रद्धांजलि.
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत ही गहरे भावों के साथ सजाया आपने इस संस्मरण को, दिल को छूती बात, उनसे भी गहरे हैं ये जज्बात् ।
ReplyDeleteहाँ आँखें नम हो गयी बहुत ही मार्मिक और भावमय रचना है अपके पिता जी को मेरी भी विनम्र श्रधाँजलि आभर्
ReplyDeleteश्रद्धांजलि ! आपकी बातों से लगा कि फादर्स डे तो आपके लिए हर पल होता है...
ReplyDeletemera bhi har din papa ka ...
ReplyDeleteजैसे जैसे आपकी पोस्ट पढ़ती जाती ....आपके पिता की तस्वीर भी साथ साथ देखती जाती ...कितना नूर है इनके चेहरे पर .....आप भाग्यशाली हैं जो ऐसे पिता के पुत्र हैं ....
ReplyDeleteनमन है आपके पिता को .....!!
aadarniy baali ji
ReplyDeleteaapke dil se nikale hue zazbaat hai ye .. mera man se naman hai aapke pita ko ....
kuch sapne hamesha hi zinda rahte ahi ...
aabhar..
vijay
श्रद्धांजलि बाली जी आपके पिताजी को।
ReplyDeletehello... hapi blogging... have a nice day! just visiting here....
ReplyDeleteaapke vicharon ko naman karta huin.....
ReplyDeleteपढ़ते पढ़ते अतीत के ११ वर्ष पूर्व कि घट्ना ऐसे प्रतीत हुई जैसे कि अभी अभी हुई हो।
ReplyDeleteपिता हमेशा अपने बेटे के रूप में जीता है. उसकी ख्वाहिश होती है कि बेटा उसके अधूरे सपनों को पूरा करे....
ReplyDeleteआपके पिताजी को नमन
एक अच्छी पोस्ट के लिए आपको बधाई
आपके पिताजी को मैं अपनी भावभीनी श्रधांजलि समर्पित करती हूँ ...
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