(फोटो अनाम स्त्रोत)
जो बात हमारे अपने देश मे हजारो सालों से मान्य है ,उसी बात को जब विदेशी मोहर लग जाती है तो वह अध्ययन का विषय बन जाती है।.....वर्ना हमारे देश मे ऐसे बातों को मानने वालो को अंधविश्वासी कहा जाता है।
आध्यात्म और विज्ञान-...... पोस्ट लिखी थी। उसी दिन एक पोस्ट और पढ़ने को मिली।लेकिन उस पोस्ट को उस पर ब्लोग मे पढ़ कर अजीब लगा। क्योकि उस ब्लोग को पढ़ कर मुझे हमेशा लगा कि उस का उद्देश्य ही "अंधविश्चास उन्मूलन अभियान है"...पता नही मुझे ऐसा महसूस होता है कि हम स्वयं पर कभी भरोसा नही कर पाते। हम उन बातो को भी प्रमाण मागँने लगते है जो मात्र अनुभव या स्व अनुभूति पर निर्भर करती हैं।लेकिन जब उन्हीं मान्यताओ का अध्ययन उन्नत देश या विदेशी वैज्ञानिक करने लगते हैं तो वह हमारे लिए मान्य होने लगता है। ऐसा क्यो होता है ?आप अपने विचार बताएं।
शेष फिर कभी.......
न जाने कितने दिनों से मैं खुद भी इसी जिज्ञासा में हूं .. आपको जानकारी मिले तो हमें भी बताने का कष्ट करें !!
ReplyDeleteयही मानसिकता है हमारी बाली साहब ! इसी लिए तो मैंने भी कल अपने ब्लॉग पर न्यूज़ वीक की वह खबर ठेली थी हिंदुत्व के बारे में !
ReplyDeleteबिल्कुल सही कह रहे हैं आप ।
ReplyDeleteहमें अपने पे कम और गोरी चमड़ी पर भरोसा अधिक है शायद इसलिए...
ReplyDeleteनीरज
प्रत्यक्ष तौर पर बहुत से मामलॊं में वे हमसे शाक्तिशाली हैं ।(जैसे आर्थिक, सामरिक) । और शक्ति बहुत सारी चीजों का निर्धारक स्वयमेव ही बन जाती है !
ReplyDeleteदूसरे हमारी मानसिक दुर्बलता तो अपने आप ही में एक कारण है ।
खैर बाकी लोगों का मुझे नहीं पता, पर मुझे किसी चीज़ पर अधिक और जल्दी विश्वास होता है, अगर वो मुझे वैज्ञानिक तर्क दे कर समझाई जाये। आप कहते हैं हिप्नोटिज़्म एक अनुभव की बात है, जी नहीं !! सम्मोहन को भी हमारा विज्ञान मानता है, और वह हमारे मस्तिष्क की ही एक अवस्था है।
ReplyDeleteआप बात घूम फिर कर देश-विदेश पर क्यों ले जाते हैं, विदेश में ऐसे विषयों पर ज़्यादा रिसर्च होती होगी, क्योंकि वहां, काम करने वाले को reward मिलता है। सरकार रिसर्च को support करती है। शायद इसी लिये भारतीय लोग उधर भागते हैं, और वो देश दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की कर रहे हैं
खैर, मुझे लगता है, हम बहस को गलत दिशा में ले कर जा रहे हैं, मुद्दा तो ये था, कि हम लोग किसी बात को तब तक नहीं मानते जब तक हमें उसका वैज्ञानिक रूप से प्रमाण नहीं मिल जाता। हां भई, तो उसमें गलत भी क्या है?
वैसे मैं कोई वैज्ञानिक नहीं हूँ, पर मैं ये मानता हूँ, कि हर चीज़ के पीछे एक कारण एक नियम होता है, बेशक हम उस से अवगत हों या न हों
उदहारण के तौर पर
Newtons laws of motion were in existence since enternity. Its just Newton brought them in front of the world.
Science is not about creating new rules. Its just about discovering the rules that already exist in Nature.
--Don't know the author of this quote.
अंग्रेज़ चले गये मगर्……………।
ReplyDelete@योगेश जी,आप की टिप्पणी पढ़ कर मुझे यही लगता है कि आपने पिछली पोस्ट ध्यान से नही पढ़ी। विज्ञान और आध्यातम को जानने के लिए उसी के नियम मानने होगें....लेकिन आप विज्ञान के नियमों से ही आध्यातम को परखना चाहते हैं।
ReplyDeleteजिस प्रकार आप सम्मोहन को विज्ञान मानते है उसी तरह समय पा कर बाकी बातों की तह तक भी विज्ञान शायद पहुँच जाए। सम्मोहन भावनाओं पर आधारित है.....दूसरी बात..सभी को सम्मोहित नही किया जा सकता। जबकि विज्ञान पर आधारित किसी भी कार्य को किया जाता है तब उन सभी क्रियाओ का परिणाम एक-सा ही आता है। यह बात अलग है की विज्ञान उसे तब भी विज्ञान के अंतर्गत मानता है।
आप कहते हैं कि बात विदेश की क्यों करते है......उस का कारण यही है कि सभी अविष्कार अधिकतर विदेशी्यो ने किए हैं... आप जो भी तर्क देते है वह विदेशियों द्वारा स्थापित किया हुआ है।यहाँ यह नही कह रहा कि वह गलत है।
आप कहते है कि " हरेक क्रिया के पीछे एक कारण एक नियम होता है,बेशक हम उससे अवगत हो या ना हो"
यही बात तो कही जा रही है यहाँ, कि जिस बात से विज्ञान अभी अवगत नही है वह उसे इंकार करता रहा है।
जबकि वह कई लोगों द्वारा अनुभव की गई हैं....अब यदि वे बातें विज्ञान की पकड़ से बाहर हैं,उस के नियम से बाहर हैं तो यह तो नही माना जा सकता कि वह बातें होती ही नही।यहाँ इसी बात को कहा जा रहा है।
कानून की देवी आँखों पर पट्टी बंधे रहती है,सबूत बिना कुछ नहीं सुनती,वही बात है.......खुद पर , सत्य पर भरोसा शोध से करते हैं
ReplyDeleteउपस्थित।
ReplyDeleteआप आजकल के फैशन के खिलाफ लिख रहे हैं! :-)
ReplyDeleteआपने सही कहा हमें खुद पर विश्वास नहीं है....न खुद जैसों पर इसकी वजह है हम जब तक खुद को कम आंकंगे तब तक हम खुद पर विश्वास नहीं कर पाएंगे और अंधविश्वासों मै घिरे रहेंगे...इसके लिए हमें खुद को पहले उठाना होगा.......
ReplyDeleteमाफ़ी चाहूंगा स्वास्थ्य ठीक ना रहने के कारण काफी समय से आपसे अलग रहा
अक्षय-मन "मन दर्पण" से
बाली साहब
ReplyDeleteअसल में एक हज़ार सालों की गुलामी ने हमारे दिमाग को हीनता के भाव ने ऐसा जकड़ लिया है कि हमारी सभ्यता और संस्कृति को हीन समझने लगे हैं और उसपर भौतिकीकरण के कारण मस्तिष्क आर्थिक चमक दमक से आगे कुछ देख ही नहीं पाता. इसी को मापदंड मान लेते हैं.
महावीर शर्मा
http://mahavirsharma.blogspot.com
मंथन
http://mahavir.wordpress.com
विदेशों में (उन्नत देशो में) सरकार रिसर्च को support करती है। यह बात सही है.
ReplyDeleteकहते हैं ना घर की मुर्गी दाल बराबर । हमारी धारणाओं को पाश्चिमात्य जब तक न सराहें हमे तो वह मम्बो जम्बो ही लगता है । पर उम्मीद की किरण है, आस्था तो लोगों में जीवित है चाहे वे इसे सरे आम स्वीकार न करें ।
ReplyDeleteयह हमारा दुर्भाग्य ही है....
ReplyDeleteapaka kahana ekdam sach hai .main bhee apkee bat se sahamat hoon.
ReplyDeletePoonam
Adaraneeya Bali sahab,
ReplyDeleteVidesh ka thappa lage bina to mujhe lagata hai ab bharat men kuchh bhee sambhav naheen----yahan ke logon kee kuchh aisee manasikata hee banatee ja rahee hai.
Hemant Kumar
्सवाल देश-विदेश का नहीं प्रामाणिकता का है।
ReplyDeleteमेरा मानना है क्यूं,कैसे और क्यूं यही कि परिधि से बाहर कुछ भी नहीं है। स्वानूभूत हो या कुछ और… हर परिघटना तर्क की कसौटी पर कसी जानी चाहिये।
... ये अपना "इंडिया" है, यहां सब की अपनी-अपनी डपली अपना-अपना राग होता है !!!!!
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