Thursday, November 5, 2009

आध्यात्म और विज्ञान- बुनियादी फर्क



जिस
बात का ज्ञान हमे नही होता उस बात को पूरी तरह से नकार देना मूडता है। यदि ऐसा होता तो आज विज्ञान इतना उन्नत ना होता।लेकिन फिर भी कुछ बातों को नकारने से पहले हम कभी विचार करना ही नही चाहते।सामने वाले का सीधा प्रश्न होता है साबित करके दिखाओ। जबकि वह यह जानना ही नही चाहते कि हर बात को एक ही नियम के आधार पर साबित नही किया जा सकता।यहाँ इस बात को कहने का अभिप्राय यह है कि आध्यात्म और विज्ञान दोनों में बुनियादी फर्क है। जिस कारण उसे विज्ञान की भाँति साबित नही किया जा सकता।

पिछली पोस्ट यह अंधविश्वास नही है पर आई.... में आपको बताया गया था कि विज्ञान का आधार तर्क है और आध्यातम का आधार अनुभव। इस के अलावा एक और अंतर भी है कि विज्ञान प्रत्येक बात को तोड़ तोड़ कर जानने की कोशिश करता है जबकि आध्यात्म हर बात को जोड़ जोड़ कर जानने की कोशिश करता है।तीसरा बुनियादी फर्क यह है कि विज्ञान की कोई खोज या अविष्कार होने पर वह खोज सार्वजनिक हो जाती है, वहीं आध्यात्म के रास्ते पर चलने वाले की खोज व्यक्तिगत ही रहती है।चौथा फर्क यह है कि आध्यात्म पर चलने वाले की खोज (सिद्धि) का लाभ खोजने वाले (साधक या जानकार) की मदद के बिना नही उठाया जा सकता...जबकि विज्ञान की खोज कोई भी करे उस का लाभ सभी उठा सकते हैं।पाँचवां फर्क यह है कि विज्ञान की खोज का गलत प्रयोग का फल यह जरूरी नही है कि खोजकर्ता को भुगतना पड़े।जबकि आध्यात्म की खोज (सिद्धि) का गलत प्रयोग करने वाले खोजकर्ता (साधक या जानकार) को और खोज का लाभ उठाने वाले दोनों को ही भुगतना पड़ता है। यह सब जानकारी इस विधा के जानकारों की दी हुई ही है।

उपरोक्त जानकारी इस लिए दी गई है ताकि विज्ञान और आध्यात्म के बुनियादी फर्क को समझा जा सके। यहाँ पर पिछली पोस्ट पर आई एक टिप्पणी का जवाब देना चाहुँगा। क्योकि वह यह समझते हैं कि यहाँ पर मैं किसी एक पक्ष पर ही जोर देने की चैष्टा कर रहा हूँ। यहाँ पर स्पष्ट करना चाहुँगा कि मै एक जिज्ञासु हूँ......मैने बहुत कुछ अब तक के अपने जीवन में अपनी आँखो के सामने घटते देखा है जिसने मुझे अचंभित किया.....इसी लिए इस तह तक जाने की अभिलाषा मुझे है।

अब टिप्पणी की बात जो कि पिछली पोस्ट .यह अंधविश्वास नही है पर आई.... पर दी गई थी-:

@ योगेश जी, सिर्फ किसी बात से सहमत ना होने से कोई बात नही बनती।आप ने लिखा है कि"इलेक्ट्रोन कीको साबित किया जा सकता है। इलेक्ट्रोन दिखाई इस लिये नहीं देता क्योंकि ज्यों ही उस पर light डालते हैं वो light energy से vibrate हो जाता है।"

यही बात परमात्मा को मानने वाला भी कहता है, वह कहता है कि जब साधक साधना द्वारा परमात्मा में विलीन हो जाता है तो उसका उस समय स्व नष्ट हो जाता है जिस कारण वह उस के बारे में नही बता पाता। दूसरी बात वह दिखाई इस लिए नही देता कि वह एक अनुभव है अनुभूती है। लगता है आपने लेख ध्यान से नही पढ़ा।

वहाँ स्पष्ट लिखा है कि विज्ञान और आध्यातम मे कुछ बुनियादी फर्क हैं। पहला तो यही है कि विज्ञान का आधार तर्क है और आध्यात्म का आधार अनुभव।
तीसरी बात आप ने कही"इलेक्ट्रोन को आधार ले कर वैज्ञानिकों ने सैंकड़ों और नई theories दी हैं, जिससे हमने कईं और नये राज़ खोले हैं" इसी तरह आध्यातम ने भी कई राज जानें हैं...जिस मे से एक है सम्मोहन विधा...यदिवैज्ञानिक भाषा मे कहे तो हिप्नोटिज्म, मैस्मैराइज.....जिसे विज्ञान भी स्वीकारता है.....जो की मात्र भावना परआधारित है। यह खोज किसी इलेक्ट्रोन से नही की गई....यह अनुभव के आधार पर स्थापित की गई है।

चौथी बात आपने कही "आपकी पोस्ट से साफ झलक रहा है, that you post is biased towards GOD and bhoot pret."

यहाँ पर किसी बात का पक्ष नही लिआ जा रहा....पता नही आपने किस आधार पर ऐसा सोचा? यहाँ मैं यह स्पष्ट कर दूँ, कि मै विज्ञान का विरोधी नही हूँ.....क्या मुझे यह मालूम नही कि जिस माध्यम से हम आपस मे जुड़े हुए है वह विज्ञान की ही देन है ? जरा विचारीए की आपकी कही बात किस पर लागू होती है? आप को समझ जाएगा।
शेष फिर किसी पोस्ट में......

9 comments:

  1. मेरे लिए आध्यात्म बस esp है मतलब एक्स्ट्रा सेंसरी परसेप्शन

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  2. दुनिया में हर काम प्रकृति के नियमानुसार होती है .. और इसे पूर्ण तौर पर समझ पाना और स्‍वीकार कर पाना आध्‍यात्‍म है .. और इसे समझनेवाला और स्‍वीकार कर पाने वाले व्‍यक्ति ज्ञानी माने जा सकते हैं .. इतने बडे ब्रह्मांड में जब पृथ्‍वी की कोई हैसियत नहीं .. तो एक व्‍यक्ति या व्‍यक्ति के समूह की क्‍या हैसियत हो सकती है .. विज्ञान के क्षेत्र में जो बडी से बडी उपाधि का हकदार होता है .. वो प्रकृति के एक बिल्‍कुल छोटे से रहस्‍य का खुलासा करता है .. जबकि ऐसे अनगिनत रहस्‍य भरे पडे हैं .. जो समय के साथ साथ उजागर होते रहेंगे !!

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  3. विज्ञान का आधार तर्क है और आध्यातम का आधार अनुभव। >>> मोटे तौर पर इससे सहमत हुआ जा सकता है!

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  4. vigyan aur adhyatm dono hi ek doosre se juda vidha hain.......na hum vigyan ke virodhi hain aur na hi adhyatm ke.......dono ki apni apni uplabdhiyan hain magar jahan tak vigyan ka sawaal hai wo apne tarkon ki kasauti par kaskar kuch pata hai magar adhyatm mein kahin koi tark nhi sirf anubhav aur jab insaan anubhav ke dam par kuch pata hai to uske baad use kuch aur janne ko shesh nhi rah jata.

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  5. विज्ञान और आध्यात्म दोनों अपने अपने अलग अलग रुख हैं ........ तर्क की कोई बात नहीं है इस पर .

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  6. Lekhak ji kya aapke spritual Guru bhi hain....

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  7. “योग विज्ञान है”
    योग का इस्लाम, हिंदू, जैन या ईसाई से कोई संबंध नहीं है। लेकिन चाहे जीसस, चाहे मोहम्मद, चाहे पतंजलि, चाहे बुद्ध, चाहे महावीर, कोई भी व्यक्ति जो सत्य को उपलब्ध हुआ है, बिना योग से गुजरे हुए उपलब्ध नहीं होता। योग के अतिरिक्त जीवन के परम सत्य तक पहुंचने का कोई उपाय नहीं है।

    जिन्हें हम धर्म कहते हैं वे विश्वासों के साथी हैं। योग विश्वासों का नहीं है, जीवन सत्य की दिशा में किए गए वैज्ञानिक प्रयोगों की सूत्रवत प्रणाली है। इसलिए पहली बात मैं आपसे कहना चाहूंगा वह यह कि योग विज्ञान है, विश्वास नहीं। योग की अनुभूति के लिए किसी तरह की श्रद्धा आवश्यक नहीं है। योग के प्रयोग के लिए किसी तरह के अंधेपन की कोई जरूरत नहीं है।

    नास्तिक भी योग के प्रयोग में उसी तरह प्रवेश पा सकता है जैसे आस्तिक। योग नास्तिक-आस्तिक की भी चिंता नहीं करता है। विज्ञान आपकी धारणाओं पर निर्भर नहीं होता; विपरीत, विज्ञान के कारण आपको अपनी धारणाएं परिवर्तित करनी पड़ती हैं। कोई विज्ञान आपसे किसी प्रकार के बिलीफ, किसी तरह की मान्यता की अपेक्षा नहीं करता है। विज्ञान सिर्फ प्रयोग की, एक्सपेरिमेंट की अपेक्षा करता है।

    विज्ञान कहता है, करो, देखो। विज्ञान के सत्य चूंकि वास्तविक सत्य हैं, इसलिए किन्हीं श्रद्धाओं की उन्हें कोई जरूरत नहीं होती है। दो और दो चार होते हैं, माने नहीं जाते। और कोई न मानता हो तो खुद ही मुसीबत में पड़ेगा; उससे दो और दो चार का सत्य मुसीबत में नहीं पड़ता है। विज्ञान मान्यता से शुरू नहीं होता; विज्ञान खोज से, अन्वेषण से शुरू होता है। वैसे ही योग भी मान्यता से शुरू नहीं होता; खोज, जिज्ञासा, अन्वेषण से शुरू होता है। इसलिए योग के लिए सिर्फ प्रयोग करने की शक्ति की आवश्यकता है, प्रयोग करने की सामर्थ्य की आवश्यकता है, खोज के साहस की जरूरत है; और कोई भी जरूरत नहीं है।

    योग विज्ञान है, जब ऐसा कहता हूं, तो मैं कुछ सूत्र की आपसे बात करना चाहूं, जो योग-विज्ञान के मूल आधार हैं। इन सूत्रों का किसी धर्म से कोई संबंध नहीं है, यद्यपि इन सूत्रों के बिना कोई भी धर्म जीवित रूप से खड़ा नहीं रह सकता है। इन सूत्रों को किसी धर्म के सहारे की जरूरत नहीं है, लेकिन इन सूत्रों के सहारे के बिना धर्म एक क्षण भी अस्तित्व में नहीं रह सकता है। योग का पहला सूत्र: योग का पहला सूत्र है कि जीवन ऊर्जा है, लाइफ इज़ एनर्जी। जीवन शक्ति है। बहुत समय तक विज्ञान इस संबंध में राजी नहीं था; अब राजी है। बहुत समय तक विज्ञान सोचता था: जगत पदार्थ है, मैटर है। लेकिन योग ने विज्ञान की खोजों से हजारों वर्ष पूर्व से यह घोषणा कर रखी थी कि पदार्थ एक असत्य है, एक झूठ है, एक इल्यूजन है, एक भ्रम है। भ्रम का मतलब यह नहीं कि नहीं है। भ्रम का मतलब: जैसा दिखाई पड़ता है वैसा नहीं है और जैसा है वैसा दिखाई नहीं पड़ता है। लेकिन विगत तीस वर्षों में विज्ञान को एक-एक कदम योग के अनुरूप जुट जाना पड़ा है।

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  8. ऐसा माना जाता है कि विज्ञान और अध्यात्म एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी और विरोधाभासी हैं। अक्सर यह आम धारणा लोगों के दिमाग में घर कर जाती है और वे इससे अलग सोचना नहीं चाहते। लेकिन यही सोच दरअसल वैचारिक विकास के रुकने का भी संकेत है। जब हम अध्यात्म को संकीर्णताओं के घेरे में कैद कर देते हैं तब भी और जब हम विज्ञान का उपयोग विध्वंस के लिए करने लगते हैं तब भी
    दोनों की उत्पत्ति सृजन के मूल मंत्र के साथ हुई है। सृष्टि ने यह विषय बाहरी जगत तथा अंतरात्मा को जोड़ने के उद्देश्य से उपहारस्वरूप मनुष्य को दिए हैं। विज्ञान और अध्यात्म परस्पर शत्रु नहीं मित्र हैं,...एक-दूजे के संपूरक हैं।

    विज्ञान हमें अध्यात्म से जोड़ता है और अध्यात्म हमें वैज्ञानिक तरीके से सोचने का सामर्थ्य देता है। विज्ञान का आधार है तर्क तथा नई खोज और किसी धर्मग्रंथ में भी इन्हीं बातों को. कहा गया है। इसलिए अध्यात्म एवं विज्ञान में एक जैसी समानताएँ और एक जैसे विरोधाभास हैं।

    यदि विज्ञान बाहरी सच की खोज है तो अध्यात्म अंतरात्मा के सच को जानने का जरिया है। दोनों ही माध्यमों द्वारा हम इस सच को जानने के लिए ज्ञान के मार्ग पर बढ़ते हैं और उद्देश्य उक्त सच को जानकर, उस पर मनन कर प्राणीमात्र की भलाई में उसका उपयोग करना होता है। दोनों ही जगह ज्ञान का क्षेत्र अनंत है। विज्ञान के जरिए आप...विज्ञान के जरिए आप प्रकृति को प्रेम करना सीखते हैं। तकनीक या विज्ञान कभी भी प्राणियों को जाति या धर्म के नाम पर बाँटता नहीं, और यही अध्यात्म का असल अर्थ भी है।

    जब इन दोनों को मिलाकर समाज के उत्थान.हेतु उपयोग में लाया जाए, तभी इनकी असल परिभाषा सार्थक होती है। जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए वैज्ञानिक उपायों तथा खोजों की आवश्यकता होती है, ठीक उसी प्रकार मन को स्वस्थ बनाए रखने के लिए. अध्यात्मरूपी मनन जरूरी होता है। इन दो मित्रों की मैत्री को अटूट बनाकर सारे समाज में शांति और स्नेह का वातावरण निर्मित किया जा सकता है।

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