हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Sunday, January 3, 2010
अब यह चुप्पी तोड़ दो
तुम से किसने कहा-
तुम चुप रहो....
अपने को संभालो
मत ऐसे बहो।
तुम्हारा चुप रहना ही
कमजोर बनाता है।
दूसरो की
हिम्मत बढ़ाता है।
जरा अपनी तरफ देखो-
तुम भी ठीक वैसे ही हो
जैसा वह है..
फिर किस बात का भय है ?
बस! गलत का साथ
इस लिए मत दो..
क्योकि वह वही है
जो तुम हो...
ऐसे रोने वालो के साथ
तुम मत रो ।
गलत का साथ दे
हम भी
कमजोर हो जाते हैं।
कोई रास्ता नजर नही आता..
हम चुप हो जाते हैं।
चुप कमजोर भी रहता है
और झूठा भी..
अपनों से नाराज
और रूठा भी...।
इस लिए अपने को
सही से जोड़ लो।
अब यह चुप्पी तोड़ दो।
बहुत सुन्दर रचना . नववर्ष की शुभकामना
ReplyDeletegood bola to chaahey daer sae hi sahii
ReplyDeleteबहुत अच्छी तरह से लिखा है
ReplyDeleteक्या बात है! बहुत बढ़िया कविता
ReplyDeleteदीपक भारतदीप
बहुत कुछ कहते एहसास
ReplyDeleteमनभावन रचना!
ReplyDeleteनया वर्ष हो सबको शुभ!
जाओ बीते वर्ष
नए वर्ष की नई सुबह में
महके हृदय तुम्हारा!
बाली साहिब ....बहुत भावपूर्ण रचना है ....आपको ,आपके परिवार को नव वर्ष की मंगलकामनाएं तथा आपका बहुत बहुत आभार ...मेरी तुछ सी रचनाओं को ढेरों प्यार दिया है आपने .....साधुवाद !
ReplyDeleteसुंदर सकारात्मक द्ष्टिकोण.
ReplyDeleteबहुत सुंदर संदेश दिया आप ने, इस सुंदर कविता के रुप मै. धन्यवाद
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक रचना।
ReplyDeleteBahut badiya!
ReplyDeleteकाफी सुंदर और मन को छूनेवाली कविता..
ReplyDeleteकड़वा सच
ReplyDeletejab bhi bola hai sach ,
ReplyDeleteaur todi hai cchuppi.
hum hee huye badnam ,
hum hee banay jhoothi.
apka sandesh bahut aacha hai
par................