हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Monday, January 25, 2010
गज़ल
(नेट से साभार)
आज फुर्सत मे बैठ कर कुछ गजलें सुन रहा था.."तुम इतना क्यूं मुस्करा रहे हो.." इसी को सुनने के बाद गजल लिखने बैठा और ये गजल बना ली....। इस मे उस गजल की झलक भी नजर आएगी....लेकिन फिर भी लिख दी....। जब गजल कि अंतिम पंक्तियां लिखनें लगा....तो सच्चाई अपने आप सामने आ गई..ये पंक्तियां कहीं बहुत गहरे से निकल कर सामने आ गई..हैं ...आप भी देखे....।
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मुस्कराने की नही बात क्यूँ मुस्करा रहे हो।
कुछ बोलते नही , हमको बहका रहे हो।
खुशी होती गर कोई, बाँट तुझसे लेते,
क्यूं कर मुझको ऐसे, तुम सता रहे हो।
बात कुछ हुई है , चुभ रही है तुम को।
चुप रह कर मुझको , पराया बना रहे हो।
आईना भी मुझको अब , कुछ नही बताता,
लगता है ये भी मुझको, तुझ से मिल गया हो।
कहने को दिल की बातें, हम आज कह रहे हैं,
परमजीत दूसरो के ख्यालों को,अपना बता रहे हो।
खुशी होती गर कोई.......
ReplyDelete..... बहुत सुन्दर !!!!
परमजीत गजब ढा रहे हो,
ReplyDeleteदिल हमारा खुलेआम चुरा कर,
खुद को मासूम बता रहे हो...
जय हिंद...
क्या बात है, लाजवाव लिखा है भाई आपने ।
ReplyDeleteवाह भाई...अब तो रोज गज़ल सुना करिये और नई रचनाएँ उतारते रहिये. :)
ReplyDeleteअद्भुत, उम्दा विचार
ReplyDeleteसंकलित
कर गई मुझे पुलकित
बस! एक गलती
लाजवाव ....
ReplyDeleteवाह इतनी साफगोई भी अच्छी नहीं उम्दा गज़्ल बन गयी शुभकामनायें
ReplyDeleteउम्दा है , बस चौथे शेर को दुरुस्त कर लीजिये । अच्छी प्रस्तुति ,बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर ग़ज़ल....अद्भुत..... उम्दा.......
ReplyDeletebahut hi umda khyalat.
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा बन पड़ी है ग़ज़ल ......... शेर हक़ीकत बयान कर रहे हैं ........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर। बधाई।
ReplyDeleteवाह वाह जबाब नही, बहुत सुंदर गजल
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाओ
धन्यवाद
आप को गणतंत्र दिवस की मंगलमय कामना!
ReplyDeleteबहुत उम्द्दा..
ReplyDeleteगणतंत्र की शुभकामनाए !!
दूसरों के ख्यालों को अपना बता रहे हो ऐसी बात नही है । कभी कभी क्या होता कि किसी कविता या गजल को सुनते सुनते मन भी विचारों मे बहने लगता है और फिर अपना कुछ बनने लगता है ,भाव मिलते जुलते मगर शब्द अपने ,कभी किसी रचना से विचारों से बिल्कुल भिन्न विचार भी आने लगते हैं । उनकी गजल का (जो आप सुन रहे थे ) आशय यह कि मुस्कान बनावटी है और मुस्करा कर किसी दुख को छिपाया जा रहा है और आपका यह कहना है कि जब मुसकराने की कोई बात ही नही है फिर भी हंसकर हमे क्यों बहकाया जा रहा है
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