हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Monday, January 18, 2010
ये कैसी जिन्दगी है........
अपनी आवाज भी मुझ को, सुनाई नही देती।
ये कैसी जिन्दगी है जिन्दगी, दिखाई नही देती।
नशा है जाम का जिस मे बहक चल रहे है सब,
होश मे मुझको यहाँ जिन्दगी दिखाई नही देती।
हरिक पल मर रहा है जिन्दगी का सामने मेरे,
पकड़ना दूर,मुझको संग भी, चलने नही देती।
खुदा ने दी, खुदा के वास्ते ही थी ये जब जाना,
परमजीत मौत मौहलत जिन्दगी को नही देती।
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बहुत बेहतरीन शेर निकाले हैं...वाह!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ।
ReplyDeleteलेकिन अन्तिम पंक्ति में सुधार की संभावनाएं नज़र आती हैं ।
शानदार लाइनें हैं,बधाई.
ReplyDeletezindagi ki shakl hi kuch aisi ho chali hai.....bahut hi badhiyaa
ReplyDeleteअति सुन्दर अर्थपूर्ण रचना।
ReplyDeleteरपनी बात भी मुझे सुनाई नही देती
ReplyDeleteये ज़िन्दगी है ज़िन्दगी दिखाई नहीं देती वाह बाली जी कमाल की रचना है बधाई
परम जीत जी बहुत सुंदर गजल ओर सभी शॆर.
ReplyDeleteधन्यवाद
... bahut sundar, badhaai !!!!
ReplyDeletebahut hi arthpoorna rachna.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत लाजवाब शेर हैं .......... शुरुआती शेर ने तो कमाल कर दिया ........
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने! इस लाजवाब रचना के लिए बधाई!
bahut sundar rachna
ReplyDeleteParamjit Ji,
ReplyDeleteBahut achchi ghazal likhi hai
APNI AWAAZ BHI MUJH KO SUNAYI NAHIN DETI
YEH KAISI HAI ZINDAGI, ZINDAGI DIKHAI NAHIN DETI
Surinder
सही फरमाया है आपने
ReplyDeleteBhawo ko Bahut Baariki Se Sajaya
ReplyDeletehai Apne
अपनी आवाज भी मुझ को, सुनाई नही देती।
ReplyDeleteये कैसी जिन्दगी है जिन्दगी, दिखाई नही देती।
परमजीत जी -
कबीर के दोहे आपके खूब पढ़ते हैं -
आज आप की रचना पढ़ी -
बहुत अच्छी लगी -
शुभकामनायें -