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Monday, March 22, 2010

मन हमारा पंछी....

                                                                                                    (गुगुल से साभार)


मन हमारा पंछी बन कर उड़ रहा आकाश में...
ठौर यहाँ मिल ना सके, मिल जाएगी इतिहास में।

सोचता है कौन, जीवन को समर, कोई यहाँ...
चल रहे हैं हम सभी,भीड के ही साथ में।


जी रहे हैं, या की जीना, आज हम को पड़ रहा...
आज जीवन भी ये अपना, रहा नही है हाथ में।


सीख देते हैं सभी, हिम्मत कभी ना हारना....
हिम्मत कहाँ से लाये हम,बिकती नही बाजार में।


जो मरा हो पहले से उसको कभी ना मारना...
लेकिन मरता है यही, देखो जरा इतिहास में।




सच ही जीता है सदा,सुनते आये हैं इतिहास मे..
सोचता हूँ ,क्या धरा है, आज इस बकवास में।

मन हमारा पंछी बन कर उड़ रहा आकाश में...
ठौर यहाँ मिल ना सके, मिल जाएगी इतिहास में।

15 comments:

  1. सुन्दर!


    हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!

    लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.

    अनेक शुभकामनाएँ.

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  2. बहुत खूब
    मन हमारा पंछी बन कर उड़ रहा आकाश में
    ठौर यहाँ मिल न सके मिल जायेगी इतिहास में
    कितना चंचल है ये मन भी इसे तो न मालुम जैसे चैन से रहने की आदत ही नहीं. सो हर रोज़ नयी ऊँचाई पाना चाहता है. बहुत सार्थक कविता

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  3. मन पंछी हो और अभिव्यक्ति को ब्लॉग का माध्यम मिले तो बहुत अद्भुत सृजित होता है!

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  4. सुन्दर...."
    प्रणव सक्सैना
    amitraghat.blogspot.com

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  5. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  6. bahut hi shaandaar prastuti.........behad gahan .

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  7. सुन्दर लिखा है जी। बधाई।

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  8. बहुत सुंदर भाव ........आभार !

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  9. आदरणीय बाली जी, बहुत ही खूबसूरती से आपने इस रचना में एक बड़े जीवन दर्शन को शब्दों में बांधा है। सुन्दर रचना के लिये हर्दिक बधाई स्वीकार करें।

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  10. बहुत बढ़िया रचना प्रस्तुति . बधाई .

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  11. वाह!! बहुत बढ़िया रचना. आजकल दिख नहीं रहे हैं आप??

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  12. Manniya Bali Ji,
    Bahut hi sunder Rachana
    "man humara panchhi bankar ud raha akash mein.
    Hardik badhai.

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