(गुगुल से साभार)
मन हमारा पंछी बन कर उड़ रहा आकाश में...
ठौर यहाँ मिल ना सके, मिल जाएगी इतिहास में।
सोचता है कौन, जीवन को समर, कोई यहाँ...
चल रहे हैं हम सभी,भीड के ही साथ में।
जी रहे हैं, या की जीना, आज हम को पड़ रहा...
आज जीवन भी ये अपना, रहा नही है हाथ में।
सीख देते हैं सभी, हिम्मत कभी ना हारना....
हिम्मत कहाँ से लाये हम,बिकती नही बाजार में।
जो मरा हो पहले से उसको कभी ना मारना...
लेकिन मरता है यही, देखो जरा इतिहास में।
सच ही जीता है सदा,सुनते आये हैं इतिहास मे..
सोचता हूँ ,क्या धरा है, आज इस बकवास में।
मन हमारा पंछी बन कर उड़ रहा आकाश में...
ठौर यहाँ मिल ना सके, मिल जाएगी इतिहास में।
सुन्दर!
ReplyDeleteहिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
बहुत खूब
ReplyDeleteमन हमारा पंछी बन कर उड़ रहा आकाश में
ठौर यहाँ मिल न सके मिल जायेगी इतिहास में
कितना चंचल है ये मन भी इसे तो न मालुम जैसे चैन से रहने की आदत ही नहीं. सो हर रोज़ नयी ऊँचाई पाना चाहता है. बहुत सार्थक कविता
मन पंछी हो और अभिव्यक्ति को ब्लॉग का माध्यम मिले तो बहुत अद्भुत सृजित होता है!
ReplyDeleteसुन्दर...."
ReplyDeleteप्रणव सक्सैना
amitraghat.blogspot.com
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeletebawra mann panchhi si gati.....bahut achhi
ReplyDeletebahut hi shaandaar prastuti.........behad gahan .
ReplyDeleteसुन्दर लिखा है जी। बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव ........आभार !
ReplyDeletenice
ReplyDeleteआदरणीय बाली जी, बहुत ही खूबसूरती से आपने इस रचना में एक बड़े जीवन दर्शन को शब्दों में बांधा है। सुन्दर रचना के लिये हर्दिक बधाई स्वीकार करें।
ReplyDeletebahut hi badhiya prastuti,badhai----.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना प्रस्तुति . बधाई .
ReplyDeleteवाह!! बहुत बढ़िया रचना. आजकल दिख नहीं रहे हैं आप??
ReplyDeleteManniya Bali Ji,
ReplyDeleteBahut hi sunder Rachana
"man humara panchhi bankar ud raha akash mein.
Hardik badhai.