बेमतलब बोलता बच्चा
कभी गाता है...
कभी नाचता है..
कभी अध्यापक बनकर
उन बालको को पढ़ाता है...
जो वहाँ हैं ही नही...
कई बार उस से खींज कर
उसके इस बेमतल के
शोर और नाच के कारण
उस पर चिल्लाता हूँ.....
वह तो दोड़ जाता है...
लेकिन उसकी जगह
हर बार अपने को पाता हूँ।
पता नही मै अपने को
ऐसे क्यूँ सताता हूँ।
जबकि जानता हूँ-
मै भी उसी बच्चे की तरह गाता हूँ।
अपना गीत खुद को ही सुनाता हूँ।
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गलत और सही की परिभाषा मे
किस विचार को बाँधा जा सकता है?
क्योकि हरेक की परिभाषा अलग होती है...
इसी लिए इंसानियत रोती है।
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किसी ने फल खा कर
उसका छिलका सड़क पर डाल दिया।
अच्छा हुआ गरीब ने उसे खा लिया..
और एक हादसा टाल दिया।
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बड़े नाम वाले की
बेमतब की बात भी
बड़ी हो जाती है।
भले ही उसको
समझ आए या ना आए-
आम आदमी को
बहुत भाती है।
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आपके लेखन ने इसे जानदार और शानदार बना दिया है....
ReplyDelete....बहुत खूब,बेहतरीन अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी और मार्मिक कविता....."
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील रचना गज़ब की जादूगरी शब्दों से
ReplyDeletezindagi ki hakeekaton ko bahut hi sundarta se piroya hai.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर । सच में बच्चे के उद्गार बेमतलब के नहीं ।
ReplyDeleteअच्छी रचनाएं.........आप को इसके लिये बधाई.......
ReplyDeleteबहुत सुंदर ओर रोचक रचनाये.
ReplyDeleteधन्यवाद
अति सुन्दर बाली साहब , काफी दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ !
ReplyDeleteबहुत बेहतर रचना।
ReplyDeletesabhi bachchon ka bachpan ek sa nahi hoto.
ReplyDeletegareeb ne joothan kha kar jo hadsa taala , ati bhavuk yatharath hai. Sai Baba mandir ke saamne, Chat pakori ki joothan khate bachche aaj bhi aap vahan dekh sakte hain.
बहुत जबरदस्त!!
ReplyDeleteछिलका वाला तो दिल को झकझोर गया!!
सही - गलत का पता नहीं चलता क्योंकि -
ReplyDeleteव्यर्थ हो गए हैं सभी ,मोल -तोल अरु माप .
कैसे तय हो प्रीत में ,पुण्य हुआ या पाप ..