Monday, June 7, 2010

कुछ लघु कविताएं- क्षणिकाएं


अबला
जब तक तुम 
अपने आप को 
दूसरों के दर्पण मे 
देखना चाहोगी। 
तुम अबला ही कहलाओगी।

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 प्रेम या कर्ज

तुम को सँवारनें मे 
मैने अपना जीवन 
होम कर दिया।
अपनी खुशीयां देकर 
तुम्हारा गम लिआ।
वह प्रेम था तो.....
इस बात को भूल जाओ।
कर्ज था तो....
अपनी गलती पर पछताओ।

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चालाकी


सच
कड़वा या मीठा 
नही होता।
भाव उन्हें बना देते हैं।
सच कड़वा हो तो...
दूसरों के लिए।
मीठा हो तो...
अपना समझ खा लेते हैं।

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22 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर व सारगर्भित कवितायें ।

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  2. क्या बात है..उम्दा क्षणिकायें!! कम शब्दों में पूरी और बड़ी बात!

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  3. सुन्दर क्षणिकाएँ

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  4. कम शब्दों में सटीक वास्तविकता बयान की बाली साहब ! हार्दिक शुभकामनायें !!

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  5. क़र्ज़ और प्रेम.. क्या बात है

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  6. बेहतरीन अभिव्यक्ति बहुत गहरी बातें अच्‍छी क्षणिकाएं

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  7. sach meetha ho to apna samajh kha lete hain........:)

    saari ki saari ek se badh kar ek...!!

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  8. तल्‍ख लेकिन ईमानदार. बधाई.

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  9. महफ़ूज़ भाई नि:शब्द ही नहीं स्तब्ध भी
    पर मेरी ओर से वाह वाह वाह वाह

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  10. जब तक तुम
    अपने आप को
    दूसरों के दर्पण मे
    देखना चाहोगी।
    तुम अबला ही कहलाओगी।

    gagar me sagar.badhai.

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  11. Paramjeet bhai, blogchintan men shanivar ko aap ka blog shamil kar rahe hain

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  12. तीनो क्षणिकायें एक से बढ कर एक हैं पहली ने तो निश्बद कर दिया
    शुभकामनायें

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  13. तीनोंक रचनायें बहुत सुन्दर और अर्थपूर्ण हैं.

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  14. यह जानकर बहुत खुशी हुई कि आप देर से सोते हैं और देर से उठते हैं। अति उत्तम। मैं भी इसी श्रेणी का निशाचर हूं।

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  15. बहुत सुन्दर क्षणिकाएँ..

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