जब मन के भाव शुन्य हो जाते हैं तो लगता है कि अब कुछ भी तो नही हैं इस जीवन के रास्ते मे। मेरे साथ ऐसा अक्सर होता ही रहता है। समझ नही पाता कैसे उस से बाहर निकलूँ ?
अपने से कोई कितना लड़ सकता है...............अपने से कोई कैसे जीत सकता है ? बार-बार हार का मुँह देखना पड़ता है। यदि मन पहले ही कुछ कर लेता तो ये नौंबत ही क्यूँ आती। बेकार की जिन्दगी जीने से तो अच्छा है बैठ कर हरि भजन करूँ। सोचता हूँ हरि भजन करने से भी यदि कुछ लाभ ना हुआ तो क्या करूँगा ?
..........मैं ये सब लिख रहा था और मेरा भतीजा भी इसे पढ़ रहा था। वह कहता है-
" फिर एक काम करो ताऊजी..!!"
मैनें पूछा-" क्या काम करूँ?"
वह बोला-" भंगड़ा पाओ!!"
पता नही उसके इतना कहते ही शुन्यता कहाँ गुम हो गई। सोचता हूँ मेरी गंभीरता और मेरे विचारों से बेहतर तो बच्चों के बालसुलभ और मस्ती भरे उत्तर होते हैं। क्या हम वापिस बच्चे नही बन सकते ??
पता नही उसके इतना कहते ही शुन्यता कहाँ गुम हो गई। सोचता हूँ
ReplyDelete...बिलकुल सही कह रहे हैं आप. सुंदर सन्देश
संजय भास्कर
आदत...मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
सही कह रहे है परमजीत जी ………हम क्या से क्या हो जाते हैं
ReplyDeleteबच्चों का उत्साह सदा ही राह दिखाता है।
ReplyDeletewakai ham jitne bade hote jaa hain asahaj hote jaa rahe hain..shandaaar prastuti..
ReplyDeleteलेकिन इस तरह के प्रयोग काफी सफल रहते है. फिर जैसे प्रवीन जी ने कहा बच्चों का उत्साह राह दिखने में समर्थ है.
ReplyDeleteसुंदर सन्देश.
बहुत सही बात कही है आपने ..आभार ।
ReplyDeleteपरमजीत जी,अच्छा सन्देश
ReplyDeletevikram [v7]
sach kaha aapne mujhe bhi bachhon se aisi baaten sikhne ko milti hain jisse main bahut kuch sochne par majboor ho jaati hun..
ReplyDeletebachhon ka jitna komal man, komal bhawnaon ko ham dekhte hain kash waisa ham ho paate...aksar sochti hun..
bahut badiya post..
aapko sparwar navvarsh kee haardik shubhkamnayen..