हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Wednesday, January 18, 2012
पत्थर और आदमी
पत्थर और आदमी में अब फर्क नज़र आता नही। इस लिये दिल से यहाँ , कोई गीत अब गाता नही। खामोश है यहाँ हर नजर, आकाश में उठती हुई - उडता हुआ कोई परिंदा , नजर अब आता नही। सोचता हूँ गीत यहाँ किसके लिये अब गाँऊ मैं, गीत अपना अपने को, अब जरा भाता नही। पत्थर और आदमी में अब फर्क नज़र आता नही।
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सब पाथर तो सब किसके हित..
ReplyDeletesahi kaha...
ReplyDeleten gaate hain...
n gaane dete hain...
sahii kaha,ati sundar giit.
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा ………सुन्दर रचना।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
सत्य है... हर ओर संवेदनशून्यता विद्यमान है!
ReplyDeleteसुन्दर रचना!
वाह क्या कहने बहुत ही अच्छा और सच्चा लिखा है आपने बधाई स्वीकार करें ...
ReplyDeleteगहरी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुंदर रचना।
सुन्दर रचना...
ReplyDeleteकड़वा सच है ये...
Pathar aur insaan main kkoi fark nahi, tabhi to mujhe hindi main tippini dena bhi nahi aata.
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