उदास रात गई उदास दिन भी है-
ये कैसी जिन्दगी जी रहे हैं हम।
बहुत दूर हैं ......मंजिलें अपनी-
साँसों की सौगात लगती है कम।
उदास रात गई उदास दिन भी है-
ये कैसी जिन्दगी जी रहे हैं हम।
मगर जीना होगा चलने के लिये-
सुख-दुख का रस पीनें के लिये।
किसी और की मर्जी लगती है-
बदल सकेगें ना .. इसको हम।
उदास रात गई उदास दिन भी है-
ये कैसी जिन्दगी जी रहे हैं हम।
बहुत सपनें सजाये थे ... हमनें-
कदम-कदम पर रूलाया गमनें।
अपना बोया ही काटना है यहाँ-
कोई गलती क्या कर रहे हैं हम।
उदास रात गई उदास दिन भी है-
ये कैसी जिन्दगी जी रहे हैं हम।
उदास रात गई.........
ReplyDeleteसुन्दर शब्द संयोजन के साथ साथ प्रवाहमयी बेहतरीन रचना
कभी कभी मन में ऐसे भाव भी आते हैं.............और गुजर भी जाते हैं................
ReplyDeleteजिंदगी इतनी बुरी भी नहीं होती...............
:-)
शुभकामनाएँ.
अनु
जिंदगी की डोर किसी और के हाथ में होती है ।
ReplyDeleteलेकिन जीना है तो खुश भी रहना पड़ता है ।
धूप छाँव का बढ़ता जीवन।
ReplyDeleteसच ही है हम जो बोते हैं वहीँ काटते हैं. प्रशंसनीय प्रस्तुति
ReplyDeleteसटीक व सार्थक कथन्।
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा है आपने ... बेहतरीन प्रसतुति।
ReplyDeleteस्नेह के भाव लिये सुन्दर रचना .....आभार एवं शुभ कामनायें !
ReplyDeleteसच है सबको अपना बोया ही काटना है ...
ReplyDeleteJindagi wruttakar hai. Har dukh ke bad sukh to aayega hee.
ReplyDeletepar yah such hai ki man kabhee kbhee dukh se abhibhoot ho kar aisa sochane lagata hai.
sunder geet.
sahi kaha, kabhi n kbhi aise saval jarur uthate hain...
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