सुन री निशा !
तू क्यूँ उदास है..
तेरा चंदा तेरे पास है।
तेरा आना मन को भाये
सपनों का संसार रचाये
बिन पंखों के दूर गगन में
पंछी बन चहके, उड़ जाये
हर मन तेरा ही निवास है।
विरह वेदना एंकाकीपन ये
संसारी की प्रीत पुरानी
मिल के बिछुड़ना बिछ्ड़ा मिलना
संसारी की यही कहानी
आदम में बस यही खास है।
प्रतिपल जीना मरना जीवन
अमृत गरल का पीवन जीवन
सत्य असत्य का पथिक बन चलना
रिश्तों-नातों का सीवन जीवन
जीवन का कैसा परिहास है ?
अभिलाषा का निर्मित भंडार
किसने किया इसे साकार ...
नूतनता,प्रतिपल परिवर्तन
जीवन का बस यही आधार
फिर भी ये कैसा उल्लास है ?
सुन री निशा !
तू क्यूँ उदास है..
तेरा चंदा तेरे पास है।
सुन री निशा !
ReplyDeleteतू क्यूँ उदास है..
तेरा चंदा तेरे पास है।
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति ,,,!
RECENT POST -: हमने कितना प्यार किया था.
कल 25/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत सुन्दर \
ReplyDeleteनई पोस्ट मैं
तेरा चंदा है तेरे पास..बहुत सुंदर..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
ReplyDeleteराग विराग दोनों सहन कर, चन्दा घटता बढ़ता रहता है, पर है तो तेरे पास। सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteचांद रात और फिर जीवन सब कुछ तो है इस कविता में, सुंदर प्रस्तुति।
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