ना मालूम क्यों..
हम सब बदलना चाहते हैं..
बदलाव चाहते हैं...
सिर्फ अपनें को बिना बदले!
शायद .....
भीतर ये एहसास जगता है।
बदलाव...
बहुत कुछ भीतर मार देगा..
तोड़ देगा मेरे अंह की मीनारों को..
तोड़ देगा उन संबधों को...
जिन्हें मैं अपना मान कर जी रहा था।
तोड़ देगा उन जहर भरे प्यालों को...
जिन्हें मैं अमृत समझ कर पी रहा था।
जानता हूँ......
मेरे बदलनें से...
कुछ भी नहीं बदलेंगा ....
मेरे आस-पास।
वह यथावत रहेगा....
झरना वैसे ही बहेगा...
दुश्मनों के साथ मिलकर फिर...
मेरा अपना वैसे ही मुझे छलेगा।
दुनिया कहती है....
जीवन में परिवर्तन जरूरी है...
जीना एक मजबूरी है...
उन पलों में जब ....
आस-पास आग लगी होती है..
आँख बिना आँसूओं के रोती है...
भावना शुन्य में खोती है।
तब भीतर कोई पूछता है---
शैतानों की दुनिया में ...
साधू बन कर जीना..
क्या समझदारी है??
कोई जवाब नही सूझता...
कोई आवाज नही आती...
सोचता हूँ...
अब सोचना ही छोड़ दूँ।
जिस आईने में ...
मेरे चहरे के दाग..
लोगो के भीतर लगी आग..
नजर आती है...
ऐसे आईनें को ही तोड़ दूँ।
शायद फिर
मेरा ये मन ..
भटकनें से संभलें।
ना मालूम क्यों..
हम सब बदलना चाहते हैं..
बदलाव चाहते हैं...
सिर्फ अपनें को बिना बदले!
एक जड़त्व होता है जो बदलने नहीं देता ! लेकिन समय बड़ा बलवान होता है !
ReplyDeleteएक दम सही.....
ReplyDeleteये आत्मविश्लेषण ज़रूरी है...
सादर
अनु
कहा गया है, शठे शाठ्यम् समाचरेत।
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ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन ट्विटर और फेसबुक पर चुनावी प्रचार - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
sarai me shaitaano ka shor kaisa
Deletebanadgi me ye khalal kaisa
ya khuda,
jis kaam ke liye bheja hai hame to wo karne do to karne do yahan
samay ke saath sab badalta rahta hai-----------poonam
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