मरे हुए..
लोगॊं के बीच रहते हो
फिर भी ..
ये आशा करते हो
तुम्हारे कत्लेंआम के प्रति
इन्साफ की लड़ाई में
कोई सहयोग देगा...
रोज अंदोलन कर रहे हो तुम..
क्या जानते नही..
हमारे देश में...
अब अंदोलन भी ..
एक त्यौहार बन चुका है।
अजीब हो तुम..
ऐ मेरे मन..
यहाँ तो लोग
सच जानते हुए भी...
सिर्फ अपने हित को
साधना चाह्ते हैं..
और सच तो उसी दिन
तिल तिल कर मरनें लगा था..
जब हमनें देश हित को
अपने धर्म राजनीति और पार्टीयों ,स्वार्थो से
छोटा मान लिआ था।
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