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Tuesday, July 24, 2007

बरखा


काली बदरिया घिरी

मेघ गर्जनें लगे

बिजलियाँ की चमक देख

नाचे मन मोर हो।

लहराती बल खाती

तरूवर की डालीयाँ

टप-टप टपकता पानी

गाए मेघ राग ज्यों।

बरखा बहार है

सावन फुहार हो

याद कर रहे सभी

अपने-अपने प्यार को।

कागज की कश्तियों की

होड़ शुरू हो गई

बाल कि्लकारियों का

चारों दिश शोर हो।

उछाले पैरों से पानी

गडों पर जोर हो

फिसल-फिसल गिरते

अपने पे हँस-हँस हो।

छातो का काम क्या

पहली फुहार है

स्वागत करो मनवा

बरखा बहार को।

बरखा बहार है

सावन फुहार हो

याद कर रहे सभी

अपने-अपने प्यार को।

5 comments:

  1. बरखा तो जाने को है फिर भी गरमी पड़ रही है ।चलो कुछ तो राहत पहुचाएगी आप की ये बरखा।वैसे गीत वाकय ही अच्छा है।

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  2. बरखा रानी ने वाकई मे आज दिल्ली को भिगो दिया।

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  3. लहजा तो यूपी के कजरीवाला है.
    बाली साहब उत्तर प्रदेश में निवास करते हैं क्या?
    मुझे एक कजरी की लाईन याद आ रही है-
    रिम-झिम पड़ेला फुहार हो,

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  4. बरसाती बहाव है गीत में.

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  5. तपती भूमि पर बरखा की दो बूंद वाहSSS…

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