काली बदरिया घिरी
मेघ गर्जनें लगे
बिजलियाँ की चमक देख
नाचे मन मोर हो।
लहराती बल खाती
तरूवर की डालीयाँ
टप-टप टपकता पानी
गाए मेघ राग ज्यों।
बरखा बहार है
सावन फुहार हो
याद कर रहे सभी
अपने-अपने प्यार को।
कागज की कश्तियों की
होड़ शुरू हो गई
बाल कि्लकारियों का
चारों दिश शोर हो।
उछाले पैरों से पानी
गडों पर जोर हो
फिसल-फिसल गिरते
अपने पे हँस-हँस हो।
छातो का काम क्या
पहली फुहार है
स्वागत करो मनवा
बरखा बहार को।
बरखा बहार है
सावन फुहार हो
याद कर रहे सभी
अपने-अपने प्यार को।
बरखा तो जाने को है फिर भी गरमी पड़ रही है ।चलो कुछ तो राहत पहुचाएगी आप की ये बरखा।वैसे गीत वाकय ही अच्छा है।
ReplyDeleteबरखा रानी ने वाकई मे आज दिल्ली को भिगो दिया।
ReplyDeleteलहजा तो यूपी के कजरीवाला है.
ReplyDeleteबाली साहब उत्तर प्रदेश में निवास करते हैं क्या?
मुझे एक कजरी की लाईन याद आ रही है-
रिम-झिम पड़ेला फुहार हो,
बरसाती बहाव है गीत में.
ReplyDeleteतपती भूमि पर बरखा की दो बूंद वाहSSS…
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