आप किसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहते है ?
क्या दूसरों के धार्मिक मामलों में दखल देने को ?
या किसी ईसाई द्वारा मोहम्मद साहब के कार्टून बनाएं जाने को ?
या किसी मुसलिम कलाकार द्वारा हिन्दू देवी-देवताओं के चित्र बनाने को ?
या कश्मीर की आजादी की बात करने वालों को ?
या विदेशों मे बैठें उन सिख संगठनों की माँग को जो एक अलग देश की माँग कर रहे हैं ?
या उन को जो कलाकार या लेखक होनें के नाते दूसरों की भावनाएं आहत करते हो ?
या उन को जो अपनी बात ना सुने जानें पर बंदूक उठा कर जोर जबरद्स्ती पर उतारू हो जाते हैं ?
या उस मीडिया को जो आज हमारे सामनें जो कुछ भी परोस रहा है,उस की आजादी को ?
यदि यही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है तो यह हमें कहाँ ले जाएगी ? जरा सोचिए ।
फिलहाल तो इसे ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहा जाता है. यह कहां ले जाएगा यह तो सबको मालूम है लेकिन कोई मानना नहीं चाहता.
ReplyDeleteबन्धु, सब जानते हैं कि वर्जनाहीन अभिव्यक्ति अंतत: अभिव्यक्ति का गला ही घोंटती है. पर कोई आत्मानुशासन को तैयार ही नहीं होता. बड़ी विडम्बना है.
ReplyDeleteयही तो समस्या है.
ReplyDeleteगाली गलौच,
ReplyDeleteपरनिन्दा एवं नुक्ताचीनी,
को ही अधिकतर समझते हैं
आजादी.
ले जायगी यह छद्म आजादी,
सिर्फ गुलामी को ओर.
यदि होना है सचमुच में
आजाद,
तो करना होगा उनका आदर
जो परोस रहे हैं
बौद्दिक ज्ञान,
एवं विरोध उन का
जो लूट रहे लोगों
के मन को,
आजादी के नाम पर!
-- शास्त्री जे सी फिलिप
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