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Monday, November 12, 2007

समाजवाद

कभी-कभी ऐसा होता है कि हम दूसरों को पढ़ कर उन से कुछ खना चाहते हैं।लेकिन कई बार हमारे कहनें का ढंग बदल जाता है...हम जिन शब्दों को कहना चाहते हैं...वह शब्द बदल जाते हैं...और कविता का जन्म हो जाता है....यहाँ पर जो रचना है वह ऐसे ही लिखी गई है..यह टिप्पणी करते समय लिखी गई एक रचना है... आप भी पढ़े...

जी हाँ,

ब नदियां

मैदान में

गंदा नाला बनती जाएगीं

जब हमारे तुम्हारें हाथों से

ऐसी फैलनें वाली

गंदगी खांएगीं।



भविष्य तो

ऐसा ही होना था।

यही तो रोना था


तरक्की के नाम पर

फैलता यह गंद

धीरे-धीरे

हम सब में भी

भरता जा रहा है।

अब ऐसा ही

समाजवाद आ रहा है।

3 comments:

  1. इस त्वरित रचना के लिए बधाई स्वीकारें.

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  2. बहुत बढ़िया काव्य रचना गंदगी भरा समाजवाद आ रहा है .सच कहा आपने

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  3. बहुत जबरदस्त प्रहार
    दीपक भारतदीप

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