जी हाँ,
जब नदियां
मैदान में
गंदा नाला बनती जाएगीं
जब हमारे तुम्हारें हाथों से
ऐसी फैलनें वाली
गंदगी खांएगीं।
भविष्य तो
ऐसा ही होना था।
यही तो रोना था
तरक्की के नाम पर
फैलता यह गंद
धीरे-धीरे
हम सब में भी
भरता जा रहा है।
अब ऐसा ही
समाजवाद आ रहा है।
हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
गंदा नाला बनती जाएगीं
जब हमारे तुम्हारें हाथों से
ऐसी फैलनें वाली
गंदगी खांएगीं।
भविष्य तो
ऐसा ही होना था।
यही तो रोना था
तरक्की के नाम पर
फैलता यह गंद
धीरे-धीरे
हम सब में भी
भरता जा रहा है।
अब ऐसा ही
समाजवाद आ रहा है।
इस त्वरित रचना के लिए बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया काव्य रचना गंदगी भरा समाजवाद आ रहा है .सच कहा आपने
ReplyDeleteबहुत जबरदस्त प्रहार
ReplyDeleteदीपक भारतदीप