कोई अज्ञात भय
जो सदा रहता है घेरे चारो ओर
उसी से बचनें की आशा में
हम बस भागते रहते हैं।
नही जानते कहाँ जाना है,
कहाँ जा रहे हैं?
इन दिशाविहीन रास्तों पर,
जो कभी हमें कहीं पहुँचाते भी नही,
इन पर चलते हुए ऐसा महसूस होता है-
हम एक ही जगह खड़े-खड़े,
कदमताल करते रह जाते हैं।
जहाँ से चले थे
वहीं अपनें को पाते हैं।
लेकिन सब प्रयास करनें पर भी,
भय नही मिटता!
हमारे सारे प्रयास
इसी भय से मुक्त होनें की खातिर
हमें और भी भटकाते हैं,
हमारा भय को और भी बढाते हैं।
आओ! सब मिलकर
इस अज्ञात भय में कूद जाएं।
मिलकर एक नया
आनंद उत्सव मनाएं।
kafii samay upraant aap kii kavita padii achchaa lagaa
ReplyDeleteajat agyat bhay sab ke man mein hota hai,usse picha chudale,anand utsav manale,bahut sundar kavita.
ReplyDeleteअध्यात्म की तरफ मुड़ने लगे हैं, अच्छी बात है.
ReplyDeleteदीपक भारतदीप
badhiya , insaan jo hai vo jhalkta hai..
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