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Wednesday, March 5, 2008

संभल जाओ



उजड ना जाए फिर से कहीं ये गुलशन मेरा
लगाओ आग ना रहता है यहाँ दिलवर मेरा
बहुत गँवा के इसे यारो !हमनें पाया है,
चिराग घर का ही ,जला ना दे ,घर मेरा।

कभी भाषा के नाम पर, लड़-लड़ मरते हैं
कभी मजहब की आग में हम जलते हैं
ऐसी आग जो भड़्काते हैं, उन्हें पहचानों,
तुम्हें मोहरा बना वो अपनी चाल चलते हैं।


०००००००००००००००००००
राज करने की नीति
इस पर जो चलते हैं
उन्हें
किससे होती है प्रीति?

अपनें फायदे के लिए
सभी कुछ दाँव पर लगाते हैं
कुर्सीयों के मोह में
आदमीयों को खाते हैं।

"एक बिहारी सो बीमारी"
कैसी बात करते हैं?
नेताओं की करनी का फल
भाई के सिर मड़ते हैं।

कौन-सी जगह है वो
जहाँ बहा नही पसीना है
फुटपाथों पर सोता है,
हक यह भी अब, छीना है।

समस्या यहाँ जो भी है
नेताओं की करनी है
जिस की कीमत हमतुम को
अपनी जां से भरनी है।

अपनें ही देश में
आजादी हमें कहाँ है?
कश्मीर कहने को
वैसे तो अपना है।
मेरा घर होगा वहाँ
देखा, बस सपना है।

छुट-पुट-सी बातों में
सार कुछ ना पाओगे
अपना जो बीजा है
खुद ही अब खाओगे।

4 comments:

  1. संभल जाओ बहुत खुब, पहले तो मे चोकां टाईटल देख कर.

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  2. बहुत गँवा के इसे यारो !हमनें पाया है,
    चिराग घर का ही ,जला ना दे ,घर मेरा।
    bahut hi umada lines,
    aur politics par jo sari ki sari panktiyan hai masha alla ek dam sahi farma rahe hai,bahut hi sundar.

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  3. वाह भाई, अति उत्तम..बधाई.

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  4. BHAVPURNA AUR PRERAK KAVITATEN.
    SRIJAN KE SHRESHTHA SAROKARON KE LIYE AAPKO BADHAI.
    BALI JI...MERE BLOG PAR AAPKI DAAD KA SHUKRIYA.

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