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Sunday, March 9, 2008

ईश्वर का बेटा


दूर कहीं आसमान से
कोई शब्द बरसाता है।
अपनी मस्ती में वह
अक्सर गाता है।
उस के शब्द
धरा पर बिखर जाते हैं।
जिसे पीर पैंगंबर चुन-चुन कर
अपनी मरजी से सजाते हैं।
************************

उस दिन जब तुम
आसमान में बैठे
कुछ गा रहे थे
अपनी ही मस्ती में गुम
अपनें को ही अपना गीत
सुना रहे थे।
मैनें तुम्हारे शब्दों को
टूट कर धरती पर बिखरते देखा।
वह जहाँ भी गिरे
फूल बन-बन के खिले।
एक अजीब सी महक
उन से आ रही थी
जिसने मुझे ना मालूम कब
अपनी ओर खींचा।
अपने मोहपाश में भींचा।

इस लिए
मुझे वह जहाँ भी मिले

मैनें उन्हें चुन लिया
जैसा सही लगा
उन्हें बुन लिया।

आज वही शब्द
मुझे मुँह चिढाते है।
ना मालूम
क्यूँ मुझे डराते हैं?

मैंने तो एक गीत
लिखने का प्रयास किया था
सभी पाए रोशनी
इसी लिए जलाया
एक प्रेम का दीया था।

मैं कहाँ जानता था
मेरे दीये से ये
दूजों के घर जलाएगें।
मेरे शब्दों की आड़ में
इक-दूजें को खाएगें।


आज मेरी तरह
वह गीत को सजाने वाला
कही अकेला बैठा
रो रहा होगा।
"काश!मेरा लिखा गीत मिट जाए"
बाँट जोह रहा होगा
**************************

उन्होनें जो सजाया
सभी एक गीत के स्वर हैं
लिखने का ढंग भले
अलग- अलग होगा,
लेकिन जिन्हें वे सुनाना चाहते थे
उन्होनें समझनें मे भूल की
शायद हरिक को
उसके अंह ने टोका।
***************************

इस लिए मैं अब
पीर,पैगंबरों के सजाए गीत
नही गाता।
बस!अब यही है
मुझे भाता।


जब भी कोई गीत गाता है
सुन लेता हूँ ,
क्यूँकि जान चुका हूँ
इन सब की तरह ,
मैं भी तेरा
बेटा ही हूँ।


3 comments:

  1. उस दिन जब तुमआसमान में बैठे
    कुछ गा रहे थेअपनी ही मस्ती में गुम
    अपनें को ही अपना गीतसुना रहे थे।
    मैनें तुम्हारे शब्दों को
    टूट कर धरती पर बिखरते देखा।वह जहाँ भी गिरे
    फूल बन-बन के खिले।एक अजीब सी महक
    उन से आ रही थीजिसने मुझे ना मालूम कब
    अपनी ओर खींचा।अपने मोहपाश में भींचा।
    bahut sundar panktiyan

    जब भी कोई गीत गाता हैसुन लेता हूँ ,
    क्यूँकि जान चुका हूँइन सब की तरह ,
    मैं भी तेरा
    बेटा ही हूँ।
    aur sundar antimsatya,main bhi tera beta hun,bahut khubsurat

    ReplyDelete
  2. वाह!! बहुत खूब..भावपूर्ण अभिव्यक्ति.

    ReplyDelete
  3. इस लिए मैं अब
    पीर,पैगंबरों के सजाए गीत

    नही गाता।
    बस!अब यही है
    मुझे भाता।
    ----------------

    जिन कागजों पर लिखे शब्दों से
    बहकता है ज़माना
    हम उन्हें नहीं पढ़ पायेंगे
    अपनी जिन्दगी अपने ही शब्दों से सजायेंगे
    --------------------
    दीपक भारतदीप

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