दूर कहीं आसमान से
अपनी मस्ती में वह
अक्सर गाता है।उस के शब्द
धरा पर बिखर जाते हैं।जिसे पीर पैंगंबर चुन-चुन कर
अपनी मरजी से सजाते हैं।************************
उस दिन जब तुम
आसमान में बैठेकुछ गा रहे थे
अपनी ही मस्ती में गुमअपनें को ही अपना गीत
सुना रहे थे।टूट कर धरती पर बिखरते देखा।
वह जहाँ भी गिरेफूल बन-बन के खिले।
एक अजीब सी महकउन से आ रही थी
जिसने मुझे ना मालूम कबअपनी ओर खींचा।
अपने मोहपाश में भींचा।इस लिए
मुझे वह जहाँ भी मिले
मुझे वह जहाँ भी मिले
मैनें उन्हें चुन लिया
जैसा सही लगाउन्हें बुन लिया।
आज वही शब्द
मुझे मुँह चिढाते है।ना मालूम
क्यूँ मुझे डराते हैं?मैंने तो एक गीत
लिखने का प्रयास किया थासभी पाए रोशनी
इसी लिए जलायाएक प्रेम का दीया था।
मैं कहाँ जानता था
मेरे दीये से येदूजों के घर जलाएगें।
मेरे शब्दों की आड़ मेंइक-दूजें को खाएगें।
आज मेरी तरह
वह गीत को सजाने वालाकही अकेला बैठा
रो रहा होगा।"काश!मेरा लिखा गीत मिट जाए"
बाँट जोह रहा होगा**************************
उन्होनें जो सजाया
सभी एक गीत के स्वर हैंलिखने का ढंग भले
अलग- अलग होगा,लेकिन जिन्हें वे सुनाना चाहते थे
उन्होनें समझनें मे भूल कीशायद हरिक को
उसके अंह ने टोका।***************************
इस लिए मैं अब
पीर,पैगंबरों के सजाए गीतनही गाता।
बस!अब यही हैमुझे भाता।
जब भी कोई गीत गाता है
सुन लेता हूँ ,क्यूँकि जान चुका हूँ
इन सब की तरह ,मैं भी तेरा
बेटा ही हूँ।
उस दिन जब तुमआसमान में बैठे
ReplyDeleteकुछ गा रहे थेअपनी ही मस्ती में गुम
अपनें को ही अपना गीतसुना रहे थे।
मैनें तुम्हारे शब्दों को
टूट कर धरती पर बिखरते देखा।वह जहाँ भी गिरे
फूल बन-बन के खिले।एक अजीब सी महक
उन से आ रही थीजिसने मुझे ना मालूम कब
अपनी ओर खींचा।अपने मोहपाश में भींचा।
bahut sundar panktiyan
जब भी कोई गीत गाता हैसुन लेता हूँ ,
क्यूँकि जान चुका हूँइन सब की तरह ,
मैं भी तेरा
बेटा ही हूँ।
aur sundar antimsatya,main bhi tera beta hun,bahut khubsurat
वाह!! बहुत खूब..भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteइस लिए मैं अब
ReplyDeleteपीर,पैगंबरों के सजाए गीत
नही गाता।
बस!अब यही है
मुझे भाता।
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जिन कागजों पर लिखे शब्दों से
बहकता है ज़माना
हम उन्हें नहीं पढ़ पायेंगे
अपनी जिन्दगी अपने ही शब्दों से सजायेंगे
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दीपक भारतदीप