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Sunday, July 20, 2008

नर-नारी और बराबरी का हक

मत ढूंढो !
अपने आप को
दूसरो के भीतर,
वहाँ तुम पराजित हो जाओगे।
मत माँगों !
जो सदा से तुम्हारा है।
अपने को लज्जित पाओगे।


एक -दूसरे पर
लांछन लगाने से

कुछ नही होगा।

दोनों को बस
एक रास्ता

अपनाना होगा।

जब भी कोई काम
बिना दूजे की सहमति के
जो भी कुछ करे,

किया जाए,

गलत माना जाएगा।
उसी दिन
बराबरी का
बिगुल बज जाएगा।
इन्सानियत का जन्म होगा
शैतान मर जाएगा।

5 comments:

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  2. मत ढूंढो !
    अपने आप को
    दूसरो के भीतर,
    वहाँ तुम पराजित हो जाओगे।
    मत माँगों !
    जो सदा से तुम्हारा है।
    अपने को लज्जित पाओगे।

    बेहतरीन बात!

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  3. बहुत ही गुढ़ अर्थ का संदेश लिये हुए यह कविता। बधाई
    दीपक भारतदीप

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  4. Vah Paramjeet ji, kya baat hai. bhut sahi baat ko apni rachana me kaha di. itani sahi baat ko kam sabdo me kahane ke liye badhai.

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