झिम-झिम-झिम-झिम बरसे मेघा झिम-झिम बरसे अँखियां।
रात अंधेरी संग ना साथी, खो गई सारी सखियां।
आता है फिर याद हमें वही गुजरा हुआ जमाना।
लगातार बतियाते रहना, आँखों से शर्माना।
भूल ना पाए अब तक हम बचपन की वो यादें।
झूठ-मूठ के राजा-रानी, झूठ-मूठ के वादें।
बेमतलब दुश्मन से लड़ना,लड़-लड़ कर मर जाना।
झूठ-मूठ तेरा रोना,हँस कर, मेरा उठ जाना।
पता नही अब कब लौटेगी बचपन की वो सखियां।
झिम-झिम-झिम-झिम बरसे मेघा झिम-झिम बरसे अँखियां।
भूल ना पाए अब तक हम बचपन की वो यादें।
झूठ-मूठ के राजा-रानी, झूठ-मूठ के वादें।
बेमतलब दुश्मन से लड़ना,लड़-लड़ कर मर जाना।
झूठ-मूठ तेरा रोना,हँस कर, मेरा उठ जाना।
पता नही अब कब लौटेगी बचपन की वो सखियां।
झिम-झिम-झिम-झिम बरसे मेघा झिम-झिम बरसे अँखियां।
बहुत सहज और सुन्दर कविता है
ReplyDelete---मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें
bachpan ke din......in mohak yaadon ko hum kitne jatan se rakhte hain....aapne bata diya,bahut achha laga
ReplyDeletebahut sundar aur komal.
ReplyDeleteबढ़िया अभिव्यक्ति. आजकल कम दिख रहे हो??
ReplyDeleteRespected Baliji,
ReplyDeleteBahut sahaj shabdon men apne bachpan kee yadon ko sanjoya hai.Badhai.
Poonam
Bali ji,
ReplyDeleteBachpan kee yaden to sabheeke pas hotee hain,lekin unhen samhal kar ham kitna rakh pate hain ye hamaree khasiyat hogee.Achchhee kavita ke liye badhai.
Hemant Kumar
आपका सहयोग चाहूँगा कि मेरे नये ब्लाग के बारे में आपके मित्र भी जाने,
ReplyDeleteब्लागिंग या अंतरजाल तकनीक से सम्बंधित कोई प्रश्न है अवश्य अवगत करायें
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue
झिम-झिम-झिम-झिम बरसे मेघा झिम-झिम बरसे अँखियाँ
ReplyDeleteकितनी सुन्दर और गेयता में अति मधुर रचना रही ये बाली जी, आपका धन्यवाद और आभार इसे पढ़वाने के लिए। बचपन कितना हसीन हुआ करता था "झूठ-मूठ तेरा रोना,हँस कर, मेरा उठ जाना”
अहा!
बहुत ही सुंदर यादें सजोई हैं आपने.......
ReplyDeleteमन प्रफुल्लित हो गया.........रचना पढ़कर
अक्षय-मन
aadarniy baali ji
ReplyDeleteaapki kavita ne to hamen bachpan men pahuncha diya ..
badhai , itni sundar rachna ke liye
main bhi kuch naya likha hai ..
aapka
vijay
आपने तो भाई मुझे भी कुरेद दिया........इस अभिव्यक्ति के लिए आपको धन्यवाद..........!!
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