सिर्फ यादो के सहारे जो जिया जाता।
बिन सुई-धागे गर कुछ सिया जाता ।
जिन्दगी कितनी हसीं हो जाती,
रोशन बिना बाती ये दीया होता।
*******
याद उनकी जब भी आती है|
बेवफा थे, यही बताती है |
भूलना फिर भी उनको मुश्किल है,
यही बात हमको सताती है|
*******
याद उनकी क्यों जाती ही नही |
आँख को कोई शै भाती ही नही।
या रब बता ये माज़रा क्या है,
अपने लिए बहार आती ही नही।
********
घर उनका है समां उनका है
दरों दिवारो पे तस्वीरें उनकी।
हमें मालुम ना था जाने के बाद उनके,
साया उनका अभी यही रहता है।
********
कुछ लोग जबरदस्ती मेहमां बन आते हैं।
ना चाहते हुए भी दिल में बस जाते हैं।
ऐसे मेहमा से कोई पीछा छुड़ाए कैसे,
दीमक बन खोखला कर जाते हैं।
*********
उन के सपनों में हम कभी आते हैं के नही।
हम से सच बात दिल की बताते हैं के नही।
इसी सोच मे बीती है जिन्दगी अपनी,
अभी आते हैं, कह रहे है, आते हैं के नही।
**********
हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Wednesday, February 18, 2009
Saturday, February 14, 2009
मुक्तक माला - १५
किसी के रोकनें से कौन रूकता है?
बिना हारे यहाँ पर कौन झुकता है?
चलन यह आज का नही, बरसों पुराना है,
सदा दुनिया में यारों कौन रूकता है?
*******************************
चलने वालों को कब कोई रोक पाया है
बस इतना याद रखो किसने सताया है।
यही चुभन जगाए रखेगी, काली रातों में,
विजय का गीत, सभी ने ऐसे गाया है।
**********************************
हम चुप थे तो यह ना समझ की प्यार नहीं ।
कुछ पूछा नही,यह ना समझ इन्तजार नही ।
तेरी आहटों के सहारे ए- दोस्त जिन्दा थे,
माना अपनी जु़बा से कर सके इजहार नहीं।
*************************************
Tuesday, February 10, 2009
दर्द
आदमी अब हाड़ मास का नही रहा।
आज के वक्त ने हमसे यही कहा ।
अब उसकी रगो में लहू नही बहता,
अब वह अपनों की बात भी, नही सहता।
आज जीवन यही रंग दिखा रहा है
इसी लिए हरेक आदमी
सबके सामने मुस्कराता है।
लेकिन अकेले में आँसू बहा रहा है।
रिश्तों के मायनें अब पैसा है
इस से कोई फरक नही पड़ता
वह सफेद हो या काला,
कैसा है ?
धन है तो तुम मा-बाप भी हो ,
बेटा-बेटी और बहन- भाई भी।
तब प्यारी है जग हँसाई भी।
यह दुनिया की नही
मेरी अपनी कहानी है।
इन्सां ऐसा कैसे हो गया
इस बात की हैरानी है।ँ
आज के वक्त ने हमसे यही कहा ।
अब उसकी रगो में लहू नही बहता,
अब वह अपनों की बात भी, नही सहता।
आज जीवन यही रंग दिखा रहा है
इसी लिए हरेक आदमी
सबके सामने मुस्कराता है।
लेकिन अकेले में आँसू बहा रहा है।
रिश्तों के मायनें अब पैसा है
इस से कोई फरक नही पड़ता
वह सफेद हो या काला,
कैसा है ?
धन है तो तुम मा-बाप भी हो ,
बेटा-बेटी और बहन- भाई भी।
तब प्यारी है जग हँसाई भी।
यह दुनिया की नही
मेरी अपनी कहानी है।
इन्सां ऐसा कैसे हो गया
इस बात की हैरानी है।ँ
Friday, February 6, 2009
अपनी अपनी उड़ान
जिस दिन से
हम सभी आऐ हैं
उसी दिन से
धीरे धीरे मर रहे हैं
हर पल।
एक दिन
पूरे मर जाऐगें।
फिर भी सपने सजाऐगें।
*****************
चिड़िया के नवजात बच्चें
अभी उड़ नही सकते।
इसी लिए
बहुत अपनें लगते हैं।
बच्चों को भी
चिड़िया के पंखों की छाँव में
बहुत सपने जगते हैं।
चिड़िया भी जानती है
एक दिन जब बच्चे
उड़ना सीख जाऐगें।
वह फिर नये सिरे से
सपने सजाऐगें।
उस में चिड़िया कहीं नही होगी।
********************
(चित्र गुगुल से साभार )
Tuesday, February 3, 2009
खाली मन
अब नही दोड़ता मन
लेकिन थका नही ।
पक कर टूट
जमीन पर आ गिरा है।
जैसे कोई तिन्का
अथाह सागर मे तिरा है।
*******************
जब मन ठहर जाता है
तो शब्द टूट-टूट कर
अर्थहीन बिखरने लगते हैं।
तब कोई भाव नही
खुशी के दीप जगते हैं।
*********************
जानता हु ,ठहरा हुआ मन
फिर एक दिन धक्का खाऐगा।
फिर अपनी राह पर
पहले जैसा चलायमान हो जाऐगा।
********************
(चित्र गुगुल से सभार)
Sunday, February 1, 2009
माँ का नया रूप
माँ की परिभाषा
अब बदलने लगी है
अब माँ घर में रह कर
बच्चो को लोरी नही सुनाती ।
अब चार दिवारी
उसे नही सुहाती।
अब वह भी बाहर जा कर
कुछ कमाना चाहती है।
इस लिए बच्चो की जिम्मेदारी
आया को सौंप जाती है।
अब मुन्नु को माँ का चहरा
रात मे ही दिखता है।
अब वह सब कुछ
आया से ही सीखता है।
अब माँ पहले से भी ज्यादा
थकी-हारी आती है।
आते ही पंलग पर सुस्ताती है।
थकान मिटा कर बहुत कम बतियाती है।
फिर रात के खानें मे जुट जाती है।
मुन्नु टुकुर-टुकुर अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से
माँ को घर में इधर-उधर दोड़ते तकता रहता है।
अपनी भाषा में बहुत कुछ कहता है।
लेकिन माँ-बाप की व्यस्तता,
कोई कुछ नही कहता है।
मुन्नु जानता है
माँ सदियों बाद अभी-अभी जागी है
अब माँ को नये रूप में
देखने की आदत डालनी होगी।
अब संतानें माँ को ही नही
पुरूष को भी पालनी होगी।
प्यारे मुन्नु!!!
अब माँ का यह नया रूप स्वीकारो!
जरूरत पड़ने पर ही माँ को पुकारो।
जरूरत पड़ने पर ही माँ को पुकारो।
अब बदलने लगी है
अब माँ घर में रह कर
बच्चो को लोरी नही सुनाती ।
अब चार दिवारी
उसे नही सुहाती।
अब वह भी बाहर जा कर
कुछ कमाना चाहती है।
इस लिए बच्चो की जिम्मेदारी
आया को सौंप जाती है।
अब मुन्नु को माँ का चहरा
रात मे ही दिखता है।
अब वह सब कुछ
आया से ही सीखता है।
अब माँ पहले से भी ज्यादा
थकी-हारी आती है।
आते ही पंलग पर सुस्ताती है।
थकान मिटा कर बहुत कम बतियाती है।
फिर रात के खानें मे जुट जाती है।
मुन्नु टुकुर-टुकुर अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से
माँ को घर में इधर-उधर दोड़ते तकता रहता है।
अपनी भाषा में बहुत कुछ कहता है।
लेकिन माँ-बाप की व्यस्तता,
कोई कुछ नही कहता है।
मुन्नु जानता है
माँ सदियों बाद अभी-अभी जागी है
अब माँ को नये रूप में
देखने की आदत डालनी होगी।
अब संतानें माँ को ही नही
पुरूष को भी पालनी होगी।
प्यारे मुन्नु!!!
अब माँ का यह नया रूप स्वीकारो!
जरूरत पड़ने पर ही माँ को पुकारो।
जरूरत पड़ने पर ही माँ को पुकारो।