
आध्यात्म और विज्ञान मे एक बुनियादी अंतर है। आध्यात्म से प्राप्त अनुभव या उपलब्धी व्यक्तिगत होती है और विज्ञान की उपलब्धी सार्जनिक। इसी लिए आध्यात्म मे प्राप्त अनुभव या उपलब्धी को दूसरो के सामने रखा नही जा सकता। ऐसा मानना है आध्यात्मिक लोगो का। दूसरी बात यह की किसी बात को कितने लोग सही या गलतमानते हैं, इस से सही और गलत को तौला नही जा सकता। एक मित्र कहते है कि "विज्ञान का आधार तर्क है।"
वहीं दुसरे आध्यात्मिक लोग यह मानते हैं कि "आध्यात्म का आधार अनुभव है।’
इसी लिए इसे प्रमाणित नही किया जा सकता। उन्होने जैसा अनुभव किया उसे सत्य माना और अनुभव स्वयं ही पाया जा सकता है.....कोई किसी का अनुभव बिना उस अनुभव मे उतरे जान नही सकता। यह ठीक वैसे ही है जैसे हम सर्दी गर्मी को, हवा को महसूस तो कर सकते हैं लेकिन देख नही सकते।
यहाँ में कहीं पढ़ी हुई बात लिख रहा हूँ मुझे याद नही मैने कहाँ पढ़ी थी शायद ओशो की किसी पुस्तक में----
"इलेक्ट्रोन दिखाई नही पड़ता लेकिन वैज्ञानिक उन्हें मानता है लेकिन परमात्मा भी दिखाई
नही देता लेकिन वह उसे नही मानता।
इलैक्ट्रोन का प्रभाव को मानता है लेकिन परमात्मा को जिस ने इतनी बड़ी सृष्टि बनाई उसे मानने से इंकार करता है।यही आदमी की मूडता है।"
ठीक इसी तरह तंत्र-मंत्र आध्यात्म के जानकार जिन बातों पर विश्वास करते हैं......यह उन का अपना निजी अनुभव है.....इस लिए इसे अंधविश्वास कि श्रैणी में नही रखा जा सकता। क्योकि अंधविश्वास तो वह है जो अनुभव ही नही किया गया,......और उसे मान लिया गया हो।
यह बात अलग है कि अपना अनुभव किसी के सामनें साबित नही किया जा सकता। जैसे किसी के शरीर मे पीड़ा हो रही है तो उसके हावभाव से यह अनुमान लगा लिआ जाता है कि इसे पीड़ा हो रही है जब की पीड़ा दि्खाई नही देती। अब यदि पीड़ा दिखाई नही देती तो क्या यह मान लिया जाए की पीड़ा होती ही नही....।
यहाँ एक बात स्पष्ट करना चाहूँगा......तंत्र-मंत्र, भूत, आत्मा व परमात्मा आदि को यहाँ आध्यात्मिकता की श्रैणी में रख कर ही विचार किया जा रहा है।आप अपने विचारो से अवगत कराते रहें। शेष फिर कभी...