Pages

Sunday, April 22, 2012

कोई गलती...


उदास रात गई उदास दिन भी है-
ये कैसी जिन्दगी जी रहे हैं हम।
बहुत दूर  हैं ......मंजिलें अपनी-
साँसों की सौगात लगती है कम।

उदास रात गई उदास दिन भी है-
ये कैसी जिन्दगी जी रहे हैं हम।

मगर जीना होगा चलने के लिये-
सुख-दुख का रस पीनें के लिये।
किसी और की मर्जी लगती है-
बदल सकेगें ना .. इसको हम।

उदास रात गई उदास दिन भी है-
ये कैसी जिन्दगी जी रहे हैं हम।

बहुत सपनें सजाये थे ... हमनें-
कदम-कदम पर रूलाया गमनें।
अपना बोया ही काटना है यहाँ-
कोई गलती क्या कर रहे हैं हम।

उदास रात गई उदास दिन भी है-
ये कैसी जिन्दगी जी रहे हैं हम।

Wednesday, April 11, 2012

उजाला


गई रात देखो
सिमटा अंधेरा
उजाला हुआ है
फिर जिन्दगी में।

चलो! पक्षीयों से
गगन में उड़े हम,
देखे कहाँ पर
खुशीयां पडी हैं।
है कौन-सी वो
धरा यहाँ पर
गर्भ मे जिसके
खुशीयां गड़ी हैं।

चुनने को आजाद
है अपना मन भी।
जो चाहो चुनों तुम
खुशी है तुम्हारी।
दुखों की कमी कोई
नजर नही आती।
खुशीयां सभी को
बहुत हैं सुहाती।

मिला कब है चाहा
किसी को यहाँ पर।
फिर भी उम्मीद
हरिक मन  सजी हैं।
पर को परास्त
करनें की चाहत।
भीतर तेरे औ’ मेरे
भी जगी है।

छोड़ो मन इस
आपाधापी का संग्राम,
किसी को भला क्या
इसने दिया है।
स्वागत करों तुम
किरण ने छुआ है।
जगी हैं उमंगें
इस रीते मन मॆं।

गई रात देखो
सिमटा अंधेरा
उजाला हुआ है
फिर जिन्दगी में।

Friday, April 6, 2012

वीर तुम बढे चलो .....





वीर तुम बढे चलो फकीर तुम बढे चलो।
वोट तुम अपना सदा, भ्रष्टाचारीयो को दो।