उदास रात गई उदास दिन भी है-
ये कैसी जिन्दगी जी रहे हैं हम।
बहुत दूर हैं ......मंजिलें अपनी-
साँसों की सौगात लगती है कम।
उदास रात गई उदास दिन भी है-
ये कैसी जिन्दगी जी रहे हैं हम।
मगर जीना होगा चलने के लिये-
सुख-दुख का रस पीनें के लिये।
किसी और की मर्जी लगती है-
बदल सकेगें ना .. इसको हम।
उदास रात गई उदास दिन भी है-
ये कैसी जिन्दगी जी रहे हैं हम।
बहुत सपनें सजाये थे ... हमनें-
कदम-कदम पर रूलाया गमनें।
अपना बोया ही काटना है यहाँ-
कोई गलती क्या कर रहे हैं हम।
उदास रात गई उदास दिन भी है-
ये कैसी जिन्दगी जी रहे हैं हम।