वो मर के भी मेरी,आँखों में बस गये।
आँख मूँदनें से पहले , देख हँस गये।
ताउम्र इस अदाको समझना हुआ मुश्किल,
जाने से पहले मुझको वो कैसे कस गये।
सोचता रहता हूँ ..हँसी का है राज क्या।
लौटकर आयेगें क्या ऐसा कुछ कहा।
आज भी राह तक रहा हूँ यार, तुम्हारी ,
क्यूँ छॊड़ तन्हा ,जहां से तू चला गया।
गुरू दोस्त सारथी मेरा आसरा थे तुम।
बीच रास्ते पर छॊड़ क्यों हुए तुम गुम।
बहार आने को थी कुछ ठहर तो जाते,
क्या कमी थी प्रेम में जो ऐसे डस गये।
वो मर के भी मेरी,आँखों में बस गये।
आँख मूँदनें से पहले , देख हँस गये।
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति
ReplyDeleteप्रभावित करती सुंदर अभिव्यक्ति ,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,
पिता हों न हों उनका साया हमेशा रहता है किसी न किसी रूप में ... भावनात्मक रचना ...
ReplyDeleteपिता के ना होने पर भी उनका आशीर्वाद साथ रहता है. सुंदर श्रधांजलि.
ReplyDeleteसाथ सदा संवाद बना है, आँखों में रह रह आता है..
ReplyDelete.....भावनात्मक रचना परमजीत जी
ReplyDeleteआज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
ReplyDeleteकभी कभी लगता है कि शायद वे मर कर ही अधिक जीवन्त हो गए, कम से कम मेरे लिए।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
भावुक कर देने वाली सुंदर कृति
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